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दिहाड़ी मजदूरों का दर्द : 'एक-एक पैसे के हो गये मोहताज, नहीं मिल रहा काम' - दिहाड़ी मजदूर

उत्तर प्रदेश में आंशिक लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है. रोजी-रोटी की तलाश में आने वाले मजदूरों को निराशा और पुलिस के डंडे के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा. देखिए यह रिपोर्ट...

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दिहाड़ी मजदूरों का दर्द

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Published : May 18, 2021, 10:13 PM IST

लखनऊ : राजधानी के अहिमामऊ दुबग्गा, अवध चौराहा, सीतापुर रोड, पॉलिटेक्निक चौराहा, मुंशी पुलिया चौराहा ऐसे कई प्रमुख चौराहे हैं, जहां पर हर रोज बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं. इनमें प्रमुख रूप से घर बनाने वाले मिस्त्री, लेबर शामिल होते हैं. ये सभी इसी आशा से रोज आते हैं कि आज उन्हें काम मिलेगा पर इस आंशिक लॉकडाउन के दौर में इन दिहाड़ी मजदूरों को प्रतिदिन निराश होकर अपने घर लौट जाना पड़ता है. रोजी-रोटी की तलाश में आए इन मजदूरों को रोटी तो नहीं मिलती पर पुलिस के डंडे जरूर मिलते हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मजदूरों का दर्द छलक पड़ा.

वीडियो रिपोर्ट




मजदूरों का छलका दर्द

काम की तलाश में आए मजदूर कन्हैयालाल कहते हैं, 'हम लोग मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाते हैं. पिछले 20 दिनों से हम लोगों को कोई काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में हम लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है. घर में बच्चे भूखे मर रहे हैं पर हमलोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.'

'काम की तलाश में 20 दिनों से आ रहे'

मजदूरी करने वाले राजबहादुर का कहना है कि विगत 20 दिनों से वह काम की तलाश में आते हैं पर काम नहीं मिलता. हां, काम के बदले पुलिस का डंडा यहां जरूर मिलता है. राजबहादुर का कहना है कि घर में ना खाने के लिए कुछ है और ना ही पैसा है. सरकार पर गुस्सा करें या फिर खुद को कोसें. पुलिस भी लगातार डंडा मारकर भगा देती है. घर पर बच्चे खाने के लिए तरस रहे हैं. ऐसे में हम लोगों के सामने बड़ी समस्या है.

'एक-एक पैसे के मोहताज हो गये'

राजमिस्त्री का काम करने वाले राधेलाल का कहना है कि वह लोग एक-एक पैसे के मोहताज हो गए हैं. कोई काम नहीं मिल रहा है. रोज इसी उम्मीद से आते हैं कि आज कोई काम मिलेगा पर प्रतिदिन हम लोगों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है. ऐसे में हम लोगों को आजीविका चलाने में काफी समस्या हो रही है. घर में शाक-सब्जी, दवाई भी नहीं है. ऊपर से हमलोगों को यहां खड़े होने पर पुलिस का डंडा जरूर मिलता है. राधेलाल का कहना है कि कोई काम ना मिलने के कारण घर चलाने में बहुत परेशानी हो रही है.

काम के बदले केवल निराशा मिलती है

राजधानी लखनऊ में लगभग 1 दर्जन से अधिक लेबर अड्डे हैं. जहां पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में लेबर आते हैं और जिन लोगों को जरूरत होती है, यहीं से इन मजदूरों को ले जाते हैं. पर प्रदेश में चल रहे आंशिक लॉकडाउन के कारण मजदूर अपने अड्डे पर आते तो जरूर हैं लेकिन यहां काम के बदले केवल निराशा ही मिलती है. पुलिस के डंडे अलग से मिलते हैं.

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