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देहदान: मेरठ के हरिभगवान की अंतिम यात्रा शमशान की बजाय मेडिकल काॅलेज पहुंची, जानें वजह

मेरठ के हरिभगवान निधन के बाद चर्चा का विषय बन गए हैं. उन्होंने अपनी पत्नी संग शादी की 50वीं सालगिरह पर 12 साल पहले देहदान का निर्णय लिया था. वहीं, गुरुवार (16 जून) को निधन के बाद परिजनों ने उनका पार्थिव शरीर मेरठ के मेडिकल कॉलेज (Medical colleges of meerut) को सौंप दिया है.

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दंपति का निर्णय बना वरदान

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Published : Jun 18, 2022, 1:00 PM IST

मेरठ: जनपद में बुजुर्ग हरिभगवान का 16 जून को 90 साल की उम्र में निधन हो गया. उसके बाद भी हरिभगवान सुर्खियों में छाए हुए हैं. उनकी अंतिम यात्रा तो निकली, लेकिन वह किसी शमशान घाट तक नहीं बल्कि मेडिकल कॉलेज पहुंची. हरि भगवान चाहते थे कि उनका शरीर मरने के बाद भी किसी काम आ जाए. इसलिए उन्होंने 12 साल पहले शादी की 50वीं सालगिरह पर अपनी पत्नी संग एक निर्णय लिया था और वह निर्णय अब मेरठ के मेडिकल कॉलेज (Medical colleges of meerut) में डॉक्टरों के लिए एक वरदान साबित होगा.

मृतक हरिभगवान (90 साल) ने शादी की गोल्डन जुबली पर अपने शरीर की वसीयत मेरठ के मेडिकल कॉलेज (Medical colleges of meerut) के नाम कर दी थी. हरिभगवान की इच्छा के अनुसार उनके निधन के बाद परिजनों ने जिले के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज को उनका पार्थिव शरीर सौंप दिया. गुरुवार (16 जून) को हरिभगवान की हार्ट अटैक से मौत हो गई. मृतक की पत्नी मीना ने 12 साल पहले शादी की 50वीं शालगिरह पर लिए फैसले को याद किया और अपने पति के पार्थिव शरीर को मेडिकल कॉलेज के छात्रों के अध्ययन के लिए सौंप दिया.

मृतक हरि भगवान के परिजनों से ईटीवी भारत की टीम ने की बातचीत

मृतक हरिभगवान अपने इस निर्णय की वजह से सुर्खियां बटोर रहे हैं. वहीं, परिजनों में उनकी मौत से गम है. लेकिन, उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के बाद परिजनों को संतोष है. मीना (मृतक की पत्नी) ने बताया कि 27 जून को शादी की 60वीं सालगिरह आने वाली थी. लेकिन अब उनके पति हरिभगवान साथ छोड़कर इस दुनिया से अलविदा कह गए. मीना ने आगे कहा कि पति-पत्नी दोनों ने 12 साल पहले ही 50वीं सालगिरह पर मेरठ के मेडिकल कॉलेज (Medical colleges of meerut) को देहदान करने का संकल्प लिया था. उन्हें अपने और पति के इस फैसले पर गर्भ है.

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हरिभगवान के बेटों ने इटीवी भारत की टीम से बताया कि उनके माता-पिता करीब 10 साल पहले ही देहदान करने का निर्णय ले चुके थे. हरिभगवानके पुत्रसंजीव रस्तोगी ने बताया कि पिताजी मेडिकल कॉलेज के छात्रों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में जान गए थे. इस वजह से उन्होंने यह फैसला लिया था और अब वह भी अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर चलना चाहते हैं.


मेरठ के मेडिकल कॉलेज की डॉ. अंतिमा गुप्ता ने बताया कि हरिभगवान का पार्थिव शरीर परिजनों ने सौंप दिया है. उन्होंने कहा कि छात्रों की संख्या के अनुपात में अध्ययन के लिए मृत शरीर कम ही मिल पाते हैं. ऐसे में हरिभगवान का पार्थिव शरीर भविष्य के डॉक्टर्स के अध्ययन में मददगार होगा. शरीर रचना विभाग की डॉ. विदित दीक्षित का कहना है कि अगर मृत शरीर नहीं मिलेंगे तो भविष्य के डॉक्टर्स कैसे तैयार होंगे. मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए देहदान तो किसी वरदान से कम नहीं है.


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