लखनऊ: योगी आदित्यनाथ सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टोलरेंस के दावे किए जाते रहे हैं. भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करते हुए उसका इलाज भी होता रहा, लेकिन यह रोग सरकार समाप्त नहीं कर पाई. ऐसे में सवाल उठता है कि योगी सरकार में भ्रष्टाचार के मामले बढ़े तो क्यों? आखिरकार भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश क्यों नहीं लगाया जा सका? विपक्ष इसको लेकर हमेशा हमलावर रहता है.
योगी सरकार में बढ़ा भ्रष्टाचार. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के जारी आंकड़ों में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन के अंतर्गत जो मामले दर्ज हुए हैं. उनमें साल 2016 में उत्तर प्रदेश में 30 मामले रहे, जबकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो भ्रष्टाचार के मामलों की संख्या बढ़कर 58 हो गई. साल 2018 में करप्शन के मामले 58 से बढ़कर 84 जा पहुंचे. राष्ट्रीय स्तर पर यह 2 फीसदी रहा, जिसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि योगी सरकार में भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई तो हुई, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले लगातार बढ़ते चले गए. सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पाई.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के जारी आंकड़े. योगी सरकार में बढ़ा भ्रष्टाचार
राजनीतिक विश्लेषक अनिल भारद्वाज का कहना है कि सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पाई तो इसकी वजह अफसर हैं. इस सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा तो लोग यह भी कहते रहे कि रिस्क बढ़ा है, घूस बढ़ी है. भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए काम करना होगा, तभी पूरी तरह से भ्रष्टाचार समाप्त हो पाएगा.
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जीरो टॉलरेंस की नीति
भाजपा प्रवक्ता हरिशचंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने भ्रष्टाचार और अपराध पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है. भ्रष्टाचार पर कठोर कदम उठाते हुए खूब कार्रवाई हुई. आजादी के बाद से अब तक जितनी कार्रवाई योगी सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर की उतनी कभी नहीं हुई. लगातार इस दिशा में कठोर कदम उठाए जा रहे हैं और भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने का काम जारी है.
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