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सुभासपा फिर भाजपा गठबंधन की साथी बनी तो राजनीतिक समीकरणों में क्या होगा बदलाव? - ओम प्रकाश राजभर

चर्चा है कि सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के हालिया बयानों से जाहिर होने लगा है कि एक बार फिर से लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा के साथ कदमताल करते हुए नजर आ सकते हैं. ऐसे में अगर सुभासपा फिर भाजपा गठबंधन की साथी बनी तो राजनीतिक समीकरणों में क्या होगा बदलाव? पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Jul 4, 2023, 8:29 PM IST

लखनऊ : राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर चर्चा गर्म है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर फिर भाजपा गठबंधन के सहयोगी बनेंगे. यह चर्चा अकारण भी नहीं है. ओम प्रकाश राजभर ने 2022 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. इस चुनाव में सुभासपा के छह सदस्य चुनकर विधानसभा पहुंचे. चुनाव के कुछ दिन बाद ही ओमप्रकाश राजभर के समाजवादी पार्टी में मतभेद सामने आने लगे. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट के उप चुनाव में राजभर खुलकर अखिलेश यादव की आलोचना करने लगे. इसके बाद बात इतनी बिगड़ी कि सपा-सुभासपा का गठबंधन टूट गया. राजभर को पता है कि बिना किसी बड़े दल के सहारे के वह चुनावी नैय्या पार नहीं कर सकते. ऐसे में उनके सामने भाजपा के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. वहीं पूर्वांचल में ज्यादा सीटें जीतने के लिए भाजपा को भी राजभर की जरूरत है.


लोकसभा चुनाव 2019

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उम्दा प्रदर्शन करने वाली भाजपा एक बार फिर आगामी लोकसभा चुनाव में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना चाहती है. इसके लिए सत्तारूढ़ दल कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहता है. पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र से पूर्वांचल की अपेक्षा ज्यादा वोट और समर्थन मिला था. पूर्वांचल में वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते हैं. ऐसे में पार्टी के लिए पूर्वांचल में अच्छा प्रदर्शन मायने रखता है. 2001 में जारी सामाजिक न्याय समिति में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की पिछड़ी जातियों में 2.44 फीसद राजभर समाज है. इनमें गोड़िया, खरवार, बारी और अर्कवंशी जैसी जातियां शामिल हैं. पूर्वांचल के कुछ जिलों में इनकी संख्या अच्छी-खासी है. कुछ सीटों पर तो यह निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. यह भी हकीकत है कि ओम प्रकाश राजभर अकेले इस जाति का वोट पाकर कुछ भी नहीं कर पाएंगे. हां, वह कुछ दलों के समीकरण जरूर बिगाड़ सकते हैं.

लोकसभा चुनाव 2014

यदि बात सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रदर्शन की करें, तो 27 अक्टूबर 2002 को ओमप्रकाश राजभर ने पार्टी का गठन किया था. लगभग 15 वर्ष तक उनका संघर्ष जारी रहा, लेकिन उन्हें कोई चुनावी सफलता नहीं मिली. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पहली बार सफलता तब मिली, जब भाजपा के साथ उनका गठबंधन हुआ और आठ सीटों पर लड़ाई के बाद उनकी पार्टी के चार सदस्य चुनकर विधानसभा पहुंचे. भाजपा सरकार में वह अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री भी बने, हालांकि उनकी भाजपा के साथ दोस्ती लंबी नहीं चली. इसी साल हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने 39 सीटों पर अपनी पार्टी से प्रत्याशी उतारे, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. इसके बाद 20 मई 2019 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया, हालांकि राजभर दावा करते रहे कि उन्होंने छह मई को ही मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा दे दिया था. सुभासपा ने 2022 का विधानसभा चुनाव सपा और राष्ट्रीय लोकदल के साथ मिलकर लड़ा और उनकी पार्टी छह सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही.



प्रदेश में बसपा और कांग्रेस पार्टी की स्थिति बहुत ही खराब है. इन दोनों ही दलों की ओर से अभी तक ऐसा कुछ भी होता दिखाई नहीं देता कि यह लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाला प्रदर्शन कर सकें. सपा और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन भी बहुत अच्छा नहीं चल रहा है. ऐसे कभी भी खबर मिल सकती है कि रालोद ने भी भाजपा गठबंधन में शामिल होने का फैसला कर लिया है. ऐसा होने से रालोद को दो फायदे हैं. उसे केंद्र और राज्य की सरकार में सत्ता का सुख भोगने का मौका मिल सकता है, जबकि सपा का साथ करने से उसे कोई बड़ा फायदा दिखाई नहीं देता. ऐसे में यदि सुभासपा भी भाजपा गठबंधन का हिस्सा बनती है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे भाजपा मजबूत स्थिति में हो जाएगी और लोकसभा चुनावों में उसे कई सीटों पर फायदा होगा. ओम प्रकाश राजभर अपने बेटों का कहीं न कहीं समायोजन चाहते हैं. अगले साल बड़ी संख्या में विधानसभा की सीटें रिक्त हो रही हैं. ऐसे में भाजपा उनके किसी पुत्र को विधान परिषद भेज सकती है. कुल मिलाकर यह गठबंधन दोनों ही दलों के लिए फायदे का सौदा है और देर-सबेर होकर ही रहेगा.

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