लखनऊःविधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में फिर सत्ता हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती (Mayawati) प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के बाद एक और मास्टर स्ट्रोक खेलने पर पर गंभीरता से विचार कर रही हैं. उच्च स्तरीय सूत्रों का दावा है कि बसपा को सत्ता में वापस लाने के लिए खुद को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी से पीछे कर मायावती बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर बसपा ऐसा करती है तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की राजनीति एक नया मोड़ लेगी और सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने एक चुनौती हो सकती है. बसपा को इस मास्टर स्ट्रोक से पूर्वांचल ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फायदा हो सकता है. बसपा सुप्रीमो मायावती की इस चाल से सभी राजनितिक दलों को भी फिर से नए समीकरण बनाने पड़ सकते हैं.
नेताओं से फीडबैक ले रहीं बसपा सुप्रीमो
पार्टी सूत्रों के अनुसार ब्राह्मण समाज को लामबंद करने के लिए सतीश मिश्रा को सीएम कैंडिडेट अनाउंस करने को लेकर बसपा के अंदर भी तेजी से चर्चा हो रही है. मायावती बहुजन समाज पार्टी के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के फायदे और नुकसान के बारे में भी पार्टी के अंदर नेताओं से फीडबैक ले रही हैं. ऐसे में काफी समय से प्रबुद्ध सम्मेलन करने को लेकर ब्राह्मण समाज को जोड़ने की कोशिश कर रहे सतीश चंद्र मिश्र सीएम चेहरा बनाने से पार्टी को फायदा हो सकता है. मायावती ने पिछले दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि बसपा के ब्राह्मण जोड़ो अभियान प्रबुद्ध सम्मेलनों से विपक्षी दल परेशान हैं. योगी सरकार की तरफ से प्रबुद्ध सम्मेलन करने में अड़ंगेबाजी लगाई जा रही. ऐसे में मायावती सतीश चंद्र मिश्र को यह बड़ी जिम्मेदारी देकर सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर बड़ा मास्टर स्ट्रोक चल सकती हैं.
समीकरणों परमंथनकर रहींमायावती
दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी दलितों के वोट बैंक के आधार पर राजनीति करती रही हैं. मायावती को लग रहा है कि अगर ब्राह्मण चेहरे के रूप में सतीश चंद्र मिश्रा को आगे किया जाएगा तो इसका बड़ा फायदा बसपा को विधानसभा चुनाव में हो सकता है. दलितों के 23% वोट बैंक में ब्राह्मणों का अगर 13% वोट बैंक एक साथ लाने में मायावती सफल होती हैं, तो स्वाभाविक बात है कि इसका फायदा मायावती की पार्टी को ही होगा. बसपा के सूत्रों के अनुसार क्या दलितों के बीच सतीश चंद्र मिश्रा मिश्रा को मायावती के बराबर तवज्जो मिल पाएगी और बसपा कैडर के जो मूल वोट बैंक से जुड़ी जो जातियां हैं, क्या वह सतीश चंद्र मिश्रा को स्वीकार कर पाएंगी. इन्हीं सब पहलुओं पर विचार करते हुए मायावती पार्टी के कई नेताओं से अंदर खाने फीडबैक ले रही हैं. सतीश मिश्रा को अगर मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित किया जाता है इसके क्या फायदे होंगे और क्या नुकसान होगा. इन्हीं सभी समीकरणों पर मायावती नजर बनाकर मंथन में जुटी हुई हैं.
2007 में सतीश मिश्रा सोशल इंजीनियरिंग करने में हुए थे सफल
बता दें कि बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला दिया था और इसी फार्मूले के तहत ब्राह्मण दलित के सहारे सरकार बनाने में बसपा सफल हुई थी. ऐसे में अब सोशल इंजीनियरिंग के साथ-साथ ब्राह्मण चेहरे के रूप में मायावती सतीश चंद्र मिश्रा को आगे करने पर मंथन कर रही हैं. 2007 के विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी ने सतीश चंद्र मिश्रा को बड़ी जिम्मेदारी दी थी और उनकी अध्यक्षता में प्रदेश भर में सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रबुद्ध सम्मेलन किया गया था. इस चुनाव में अधिक संख्या में ब्राह्मण, दलित और अति पिछड़े समाज को टिकट में भागीदारी दी गई थी और यह रणनीति सफल हुई और इसी का परिणाम था कि बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बन पाई थी.
सतीश मिश्रा का राजनीतिक कद
बहुजन समाज पार्टी के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके सतीश मिश्र इस समय बहुजन समाज पार्टी से राज्यसभा के सांसद हैं. सतीश मिश्र मूल रूप से कानपुर के निवासी हैं और वकील हैं. वह साल 1998 99 में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे हैं. सतीश मिश्र 2002 में प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. जनवरी 2004 से लगातार बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में काम कर रहे हैं. सतीश मिश्र जुलाई 2004 से लगातार बसपा से राज्यसभा सदस्य बन रहे हैं. इसके अलावा वह संसद की कई समितियों के भी सदस्य बनते रहे हैं. पिछली बार साल 2016 में बहुजन समाज पार्टी ने सतीश मिश्रा पर विश्वास करते हुए राज्यसभा के लिए भेजा. मायावती खुद राज्यसभा जाने के बजाय अंतिम बार सतीश चंद्र मिश्रा को ही राज्यसभा भेजने का फैसला किया था. जो अपने आप में सतीश चंद्र मिश्र के मायावती के साथ करीबी रिश्ते और ब्राह्मण चेहरे को लगातार आगे रखने की उनकी कोशिश के रूप में नजर आती है.