हैदराबाद:मुलायम के मुकद्दर में नहीं था या बहू डिंपल के कारण चूक गए, इस पर तो मुलायम सिंह को छोड़कर शायद ही कोई कुछ बोल पाए. लेकिन इतना जरूर था कि तब मुलायम सिंह के प्रधानमंत्री बनने की संभावना अधिक थी. लेकिन कहते हैं कि अगर भाग्य में रोटी न हो तो लाख प्रयास के बाद भी नेवाला हलक से नहीं उतरता और कुछ ऐसा ही हुआ समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के साथ भी.
खैर, उत्तर प्रदेश में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) होने हैं. इस बार सीएम की गद्दी पर योगी आदित्यनाथ दोबारा बैठेंगे या फिर अबकी भाजपा का सूबे से सफाया होगा. यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा. लेकिन उससे पहले आज हम बात करेंगे उस सियासी किस्से की, जिसका वास्ता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव से है. मुलायम सिंह यादव भले ही एक सफल राजनेता हैं, लेकिन उनके जीवन में एक ऐसा भी दिन आया, जिसे वे कभी याद नहीं करना चाहेंगे.
मुलायम का सियासी मलाल और बहू डिंपल दरअसल, मुलायम अपनी बहू डिंपल यादव की वजह से प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे. 1996 मुलायम सिंह के लिए कभी न भूलने वाला साल है. वे चाहकर भी इस साल को कभी याद नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि यह वही साल था, जब वो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे.
इसे भी पढ़ें -पूर्वांचल के बड़े ब्राह्मण चेहरे सपा के साथ, बाहुबली और अधिवक्ता संगठन के लोग लगा रहे अखिलेश की जय-जयकार
सियासी विशेषज्ञों और मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस साल प्रधानमंत्री पद के लिए मुलायम सिंह यादव के नाम पर मुहर लग गई थी. उनके शपथ ग्रहण की तारीख और समय तक तय हो चुके थे. लेकिन लालू प्रसाद यादव अपनी बेटी की शादी अखिलेश यादव से करना चाह रहे थे. इस बात का पता जब अखिलेश को चला तो उन्होंने डिंपल से शादी की बात कही. इस पर मुलायम ने पूरी कोशिश की, लेकिन जब अखिलेश नहीं माने तब लालू यादव और शरद यादव ने उन्हें समर्थन नहीं दिया.
ऐसे में मुलायम सिंह यादव की जगह एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन गए. भले ही मुलायम उस समय प्रधानमंत्री नहीं बन सके, लेकिन पीएम की गद्दी पर स्थिरता नहीं रही. वहीं, दो सालों में देश को 3 प्रधानमंत्री मिले. इधर, 1996 में अस्थिरता के बीच पहले भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन लोकसभा में बहुमत सिद्ध न कर पाने की सूरत में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
मुलायम का सियासी मलाल और बहू डिंपल वहीं, कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन सरकार बनाने का कांग्रेस की ओर से कोई दावा नहीं किया और इसके बाद यूनाइटेड फ्रंट ने जब सरकार बनाने की सोची तो फिर प्रधानमंत्री पद के लिए एचडी देवगौड़ा का नाम आया. तब कर्नाटक की सियासत में देवगौड़ा का नाम काफी बड़ा होने के साथ ही उनकी छवि भी साफ-सुथरी थी. हालांकि, प्रधानमंत्री पद के दावेदार तो कई थे, लेकिन देवगौड़ा के नाम पर सहमति बनी.
यह साल ऐसे कई मायनों में खास था, पर इसे इसलिए भी याद किया जाता है कि चुनाव में महज 46 सीटें लाने वाली पार्टी जनता दल के नेता देवगौड़ा को प्रधानमंत्री का पद मिला था. वहीं, 1996 के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी तो कांग्रेस 141 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी.
इधर, इस चुनाव में जनता दल को 46 सीटें मिली थीं. सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते पहले भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ भी ले ली थी. लेकिन सदन में बहुमत नहीं साबित कर पाने के कारण उन्हें आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा था.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप