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लखीमपुर खीरी: जाने क्या है गन्ना बोने की लाभदायक तकनीक

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक युवा किसान ने 'वर्टिकल बड' तकनीक से बुआई कर गन्ने की रिकॉर्ड फसल पैदा कर ली है. इस तकनीक से कम लागत में गन्ने का अधीक उत्पादन किया जा सकता है. इस लाभदायक तकनीक को जिले के हर किसान तक पहुंचाने का जिला गन्ना अधिकारी ने निर्देश दिया है.

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गन्ना बोने की 'वर्टिकल बड' तकनीक.

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Published : Mar 3, 2020, 1:01 PM IST

लखीमपुर खीरी:जिले के डीएम शैलेन्द्र कुमार सिंह युवा किसान दिलजिन्दर सिंह की गन्ना बोने की तकनीक देख दंग रह गए. कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली इस वर्टिकल बड तकनीक और किसान के काम को डीएम ने देखा और काफी सराहा. कम केमिकल खाद और कम पानी के प्रयोग से अधिक उत्पादन लेने की इस फार्मर्स फ्रेंडली तकनीक को देख डीएम ने इस विधि का जिले के और किसानों तक पहुंचाने के निर्देश जिला गन्ना अधिकारी को दिए है.

गन्ना बोने की 'वर्टिकल बड' तकनीक.
'वर्टिकल बड' तकनीकदरसल वर्टिकल बड तकनीक यानी खड़ी गुल्ली से गन्ना बोने की तकनीक को यूपी के लखीमपुर खीरी के शीतलापुर गांव में रहने वाले किसान दिलजिन्दर सिंह ने अपना कर गन्ने की खेती के आयाम ही बदल दिए है. आम तौर पर किसान ट्रेंच या रेजर से गन्ना बोने में तीस से चालीस क्विंटल बीज एक एकड़ खेत मे डालते है. जबकि 'वर्टिकल बड' तकनीक से सिर्फ चार या पांच क्विंटल बीज में ही एक एकड़ खेत में बुआई की जा सकती है और बीज की प्रति एकड़ आने वाले खर्च में दस हजार रुपये के करीब बचत किसान को सकती है.



डीएम ने समझा तकनीक
शीतलापुर गांव के किसान दिलजिन्दर सिंह के फार्म पर खीरी के डीएम शैलेंद्र कुमार सिंह और जिला गन्ना अधिकारी ब्रजेश पटेल पूर्व आईएएस अफसर शकर सिंह के साथ पहुंचे. डीएम जैसे ही खेत में गए उन्होंने गन्ने की टेलरिंग देखा और कहा एक आंख से इतने गन्ने निकलते कभी नहीं देखे थे. किसान दिलजिन्दर सिंह ने डीएम और डीसीओ को गन्ना बोने की तकनीक विस्तार से समझाई. प्राकृतिक रिसोर्सेज का भरपूर उपयोग करते हुए ये विधि नेचुरल खेती की तरफ भी एक बड़ा कदम है. इस तकनीक में इंटर क्रॉपिंग भी कर सकते.

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वर्टिकल बड तकनीक में गन्ने को खड़ा बोया जाता है. सूर्य के प्रकाश और पानी का मैनेजमेंट करके इस तकनीक से अधिक से अधिक टिलर्स लिए जा सकते है. पानी 50 फीसदी कम उपयोग होता. इससे पानी की बचत भी की जाती है.केमिकल खाद का कम से कम प्रयोग होता है. वहीं लेबर की भी बचत होती है. मिट्टी भी बड़े ट्रेक्टर से गन्ने पर चढ़ाई जाती है, जिससे समय की भी बचत होती और गन्ने की मोटाई अधिक होती.
-दिलजिन्दर सिंह, किसान

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