कानपुर: कोरोना काल में जहां लोगों में तनाव और मोटापा समेत कई बीमारियों की बढ़ोतरी हुई है, वहीं इसका सबसे ज्यादा असर गर्भवती महिलाओं में देखने को मिला है. एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है कि लॉकडाउन खुलने के बाद से लगातार लोगों में बढ़ रहे तनाव की वजह से डिलीवरी की संख्या एक तिहाई बढ़ोतरी हो चुकी है. मेडिकल कॉलेज में लगातार प्री मेच्योर डिलीवरी मामलों की संख्या में इजाफा हो रहा है.
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि इन डिलीवरी की वजह से कई महिलाओं में एंटी बॉटम हेमरेज मिल रहा है. जिससे उनकी जान को भी खतरा हो सकता है. वहीं कई नवजात बच्चों के ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी मिल रही है. डॉक्टर्स इन बदलाव को गंभीर मानते हुए डिलीवरी के दौरान तनावमुक्त रहने की सलाह दे रहे हैं, तकि इन समस्याओं से जच्चा और बच्चा दोनों को आगे न जूझना पड़े.
समय से पहले हो रही एक तिहाई डिलीवरी
बता दें कि विशेषज्ञ ने बताया कि जहां पहले डिलीवरी 37 सप्ताह के बाद होती थी. लेकिन अब देखा जा रहा है कि एक तिहाई महिलाओं की डिलीवरी 28 से 32 सप्ताह में हो जा रही है. वहीं हाई रिस्क प्रेग्नेंसी वाली अधिकांश महिलाओं की डिलीवरी प्री टर्म हो रही है. जिससे मां और बच्चे दोनों की हालत नाजुक हो जाती है.
लॉकडाउन के बाद एकदम से बढ़ा तनाव है मुख्य वजह
बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. यशवंत कुमार राव ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लोग अपने घर में थे. उस दौरान डॉक्टर्स भी नहीं बैठ रहे थे. जिस वजह से डिलीवरी बहुत कम हो गई थी. वहीं दूसरी ओर लोगों में देखा गया तनाव में कमी आई, लेकिन लॉकडाउन के बाद एक दम से लोगों में तनाव बढ़ा, जिस वजह से प्री टर्म डिलीवरी बढ़ी. क्योंकि प्री टर्म का सबसे बड़ा कारण ही तनाव है. जिस वजह से देखा जा रहा है कि एक तिहाई डिलीवरी प्री टर्म हो रही है.