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कानपुर: 9वीं के छात्र के सुसाइड मामले में खुलासा, अंग्रेजी अच्छी न होने के कारण मौत को लगाया गले

यूपी के कानपुर में तीन दिन पहले एक नौंवी के छात्र ने आत्महत्या कर ली थी. पुलिस को छात्र के नोटबुक में लिखा एक नोट मिला है. पुलिस उसी को आधार बनाकर जांच कर रही है.

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सुसाइड मामले में खुलासा

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Published : Feb 7, 2020, 8:26 PM IST

कानपुर: शहर के एक इंटर कॉलेज में नौवीं के छात्र के सुसाइड मामले में नया मोड़ आ गया है. छात्र ने सुसाइड से पहले लिखे नोट में शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं. पुलिस नोटबुक को कब्जे में लेकर मामले की जांच कर रही है. उसने नोटबुक में लिखा है कि वह अंग्रेजी अच्छी न होने की वजह से मित्रों के बीच असहज महसूस करता है. उसने अपनी अंग्रेजी सुधारने और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने का वादा भी किया है. वहीं मनोविज्ञान के जानकार छात्रों में इस तरीके की भावना को खतरनाक मान रहे हैं.

सुसाइड मामले में खुलासा.


पुलिस कर रही घटना की तफ्तीश
दरअसल तीन दिन पहले शहर के नवाबगंज इलाके के एक इंटर कॉलेज में पढ़ रहे 9वीं के छात्र ने अपने क्लासरूम में फांसी लगा ली थी. सुबह दस बजे स्कूल खुला. छात्र का शव पंखे के सहारे लटका पाया गया. जिसके बाद चपरासी ने प्रिंसिपल को घटना की जानकारी दी.

छात्र कैंपस के हॉस्टल में रहता था और पढ़ाई के बाद कोचिंग भी पढ़ता था. पढ़ने में अच्छा होने के नाते उसके पास कोचिंग प्रमुख की भी जिम्मेदारी थी. इस नाते क्लास रूम की चाबी भी उसी के पास रहती थी. पुलिस उसकी आत्महत्या की तफ्तीश कर रही है. पुलिस को उसके नोटबुक में लिखा हुआ एक नोट मिला है.

नोट में लिखा है कि उसका फ्रेंड सर्किल काफी अच्छा है. सभी इंग्लिश में बात करते हैं तो उसे कांप्लेक्स महसूस होता है. नोट में उसने लिखा है कि तेलुगू में शुरुआती शिक्षा लेने की वजह से उसकी इंग्लिश अच्छी नहीं है, लेकिन एक दिन वह अपनी इंग्लिश अच्छी करके दिखाएगा. इसके साथ ही नोट के अंत में उसने एक लड़की का नाम भी लिखा है. पुलिस ने उसकी नोटबुक को कब्जे में ले लिया है और मामले की जांच कर रही है.


बच्चों में पनप रही बीमारी
बच्चों में पनप रही इस भावना को लेकर मनोविज्ञानक डॉ. अराधना गुप्ता का मानना है कि बच्चे के स्वभाव में अगर कोई बदलाव दिख रहा है तो उसे परिजनों और अध्यापकों को गंभीरता से लेना चाहिए. कई बार बच्चे इन समस्याओं को किसी से डिस्कश नही करते हैं. वह शान्त हो जाते हैं. दूसरों से बातचीत करना कम कर देते हैं. ऐसे में जरूरत पड़े तो बच्चे की काउंसलिंग करानी चाहिए और साथ ही साथ उसकी समस्या को जानने का प्रयास करना चाहिए.

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