कानपुर: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में स्थित शक्तिपीठ कूष्मांडा देवी का मंदिर एक हजार साल पुराना है. कूष्मांडा देवी इस प्राचीनतम मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं. इतना ही नहीं यहां माता रानी के पिंड से लगातार पानी रिसता रहता है इसलिए माता को जल वाली मैया भी कहा जाता है. शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी के दर्शन का विशेष महत्व है. कोरोना काल में भी दूर-दूर भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं, हालांकि भक्तों को मास्क के साथ ही मंदिर में प्रवेश मिल रहा है.
ऐसे हुई स्थापना
मंदिर के पुजारी बताते है कि जंगलों से घिरे माता के स्थान पर एक ग्वाला गाय चराने आता था. गाय के थन से एक स्थान पर स्वतः दूध की धारा निकलने लगती थी. उस स्थान पर जब गांव वालों ने खुदाई की तो माता कूष्मांडा देवी की पिंडी निकली. इसके बाद गांव वालों ने पिंडी स्थापना उसी स्थान पर कर दी. घाटमपुर में स्थित शक्तिपीठ मां कूष्मांडा देवी का मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है, लेकिन इसकी बुनियाद 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी. मंदिर के गर्भगृह में एक चबूतरे में माता कूष्मांडा विराजमान है. इतिहास के अनुसार 1890 में कारोबारी चंनदीदीन ने इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया था.
जल से कैसे आंखों की ज्योति बढ़ती है
मां कूष्मांडा देवी की पिंडी से अनवरत जल रिसता रहता है. मान्यता है कि जो भी भक्त इस जल को आंखों पर लगता है उसके सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर हो जाते हैं.साथ ही आंखों की ज्योति भी बढ़ जाती है. कई वैज्ञानिक आज भी जल रिसने के रहस्य को शोध के बाद भी नहीं जान सके हैं.