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जालौन: पिछले 167 वर्षों से यह मुस्लिम कारीगर बना रहे रावण का पुतला, दे रहे सांप्रदायिक एकता की मिसाल

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Published : Oct 8, 2019, 1:07 PM IST

उत्तर प्रदेश के जालौन में हिंदू-मुस्लिम के अटूट प्यार की मिसाल पेश कर रहा यह मुस्लिम परिवार हर वर्ष रावण, मेघनाद, गिद्धराज समेत कई अन्य पुतलों को बनाता चला आ रहा है. यह परिवार पिछले 167 साल से यह काम करता आ रहा है.

यह मुस्लिम परिवार देता है रामलीला में अपना बड़ा योगदान.

जालौन:167 साल पुरानी कोंच नगर में आयोजित रामलीला आज भी अपनी विरासत संभाले हुए है. हिंदू-मुस्लिम के अटूट प्यार का ही यह नतीजा है कि रामलीला में नगर के मुसलमानों का शुरू से ही एक बहुत बड़ा योगदान रहा है. भगवान श्रीराम के हाथ में जो धनुष और बाण है वह मुस्लिम कारीगर के ही द्वारा बनाए जाते हैं. रावण, मेघनाद, गिद्धराज, जटायु, मारीच के पुतले बीते 167 वर्षों से मुसलमान ही बनाते आ रहे हैं.

यह मुस्लिम परिवार देता है रामलीला में अपना बड़ा योगदान.
जिले के कोंच में आजाद नगर के रहने वाले इमरान अपने पूर्वजों की भांति इस प्राचीनतम रामलीला के हर पात्र को अपने हाथों से सजीव करते चले आ रहे हैं. एक से दूसरी पीढ़ी को विरासत में मिल रहा यह हुनर सांप्रदायिक एकता को मजबूत कर रहा है. अपने पूर्वजों की भांति इमरान पिछले एक महीने में कुंभकरण, मेघनाथ और रावण का 35 फुट ऊंचे पुतलों को तैयार करते हैं. साथी भगवान राम जिस धनुष और बाण को लेकर रावण का वध करते हैं, वह धनुष-बाण भी इमरान द्वारा तैयार किया जाता है. इमरान बताते हैं कि उन्होंने अपने चाचा वाहित से यह पुतला बनाना सीखा था, जिन्होंने यह काम 35 वर्षों तक लगातार किया. इन सभी के पुतले बनाने में करीब ढाई लाख रुपये का खर्च आता है और इन सभी पुतलों को बनाने वाले सभी कारीगर मुस्लिम वर्ग से आते हैं.
मंसूरी ने शुरू किया था पुतला बनाने का काम
नगर की रामलीला को शुरू हुए 167 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अपनी विरासत को संजोए हुए यह रामलीला निरंतर आगे बढ़ती जा रही है. नगर के बजरिया निवासी नूर मोहम्मद मंसूरी ने सबसे पहले रामलीला के पुतलों को बनाने का काम शुरू किया था और इसके बदले उन्हें पारिश्रमिक भी नहीं मिला. वहीं बाद में उनकी मेहनत का फल उन्हें रामलीला कमेटी द्वारा दिया जाने लगा और वह काम अपने आखिरी वक्त में अपने शागिर्द वहीद को सौंप गए.
मंच पर नहीं बल्कि मैदान पर होती है सजीव रामलीला
पूरे देश में इन दिनों रामलीला का मंचन किया जा रहा है, लेकिन जिले के कोंच नगर की रामलीला अपने आप में ऐतिहासिकता को आज भी दर्शा रही है. यहां पर रामलीला का मंचन मंच पर नहीं बल्कि मैदान में किया जाता है. यहां पर कोई भी युद्ध हो उसको मंच पर न करके मैदान में सजीव किया जाता है. रामलीला के आखिरी दिन राम-रावण का युद्ध मैदान में सजीव किया जाता है, जिसको देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां एकत्रित होते हैं. इस रामलीला के इतिहास को देखते हुए 7 वर्ष पूर्व टोबैगो एण्ड त्रिनिडाड के प्रधानमंत्री की भतीजी इन्द्राणी रामदास को उनकी सरकार ने कोंच की रामलीला पर शोध करने के लिए विशेष रूप से भेजा था. लोग भी कोंच के कलाकारों के द्वारा रामलीला में किए अभिनय को देखकर दंग रह जाते हैं.

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