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चार्जशीट छिपाकर आरोपियों की मदद की, 3 कर्मचारी निलंबित

जालौन में जिला न्यायाधीश ने न्यायालय परिसर का औचक निरीक्षण किया. इस दौरान उनकी नजर सीजेएम कोर्ट के कार्यालय में एक कपड़े में लिपटी फाइलों पर गई. उन्हें खुलवाकर देखा गया तो वे सभी फाइलें चार्जशीट की थीं. जांच के बाद पता चला की आरोपियों को बचाने के उद्देश्य से कर्मचारियों ने फाइलें छिपा कर रखी थीं. मामले में तीन कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है.

जालौन न्यायालय
जालौन न्यायालय

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Published : Apr 21, 2021, 4:08 PM IST

जालौन:जिला सत्र न्यायालय में चल रहे मुकदमों को देरी करने के मकसद से पुलिस द्वारा तैयार किये गए आरोप पत्रों को छिपाने के आरोप में तीन कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है. जिला न्यायाधीश ने सीजेएम कोर्ट का औचक निरीक्षण करते हुए सीजीएम कोर्ट में तैनात अभिलेखों को रखने वाले तीनों कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की है. वहीं दो अन्य कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दिए गए है. इन कर्मचारियों पर आरोप है की यह आरोपितों की चार्जशीट दबाकर अभियुक्तों की मदद कर केस को लंबा खिंचते थे.

जिला न्यायालय में चल रहे आपराधिक मुकदमो में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पुलिस द्वारा तैयार की गई चार्जशीट का बड़ा महत्व होता है. इसी आरोप पत्र से आरोपित के ऊपर सजा की रूप रेखा तय होती है.

जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह ने बीते दो दिन पहले न्यायालय पर परिसर में अलग अलग न्यायालयों का औचक निरीक्षण कर मुकदमों से संबंधित फाइलों का जायजा लिया था. निरीक्षण के वक्त उनकी नजर सीजेएम कोर्ट के कार्यालय में एक कपड़े में लिपटी फाइलों पर गई. उन्हें खुलवाकर देखा गया तो वे सभी फाइलें चार्जशीट की थीं जिला न्यायाधीश को शक हुआ तो उन्होंने जांच शुरू कर दी, जिसमें पता चला कि आरोपियों को बचाने के उद्देश्य से कर्मचारियों ने फाइलें छिपा कर रखी थीं. इन चार्जशीटों की संख्या 533 के करीब है.

जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह ने बताया कि आरोप पत्रों की फाइलों के दबने का लाभ सीधे तौर पर अभियुक्तों को पहुंचता है. जांच रिपोर्ट मिलने के बाद लिपिक भूपेंद्र सिंह संतोष रावत और शशिकांत को निलंबित कर दिया गया है साथ ही दो कर्मचारियों नियाजउद्दीन और राजीव खरे के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं.

2011 से चल रहा था यह खेल

जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह के औचक निरीक्षण से आरोप पत्रों की फाइलों को दबाने का मामला जब सामने आया तो उसकी जांच हुई तो पता चला कि यह खेल 2011 से अभी तक बदस्तूर चल रहा था. सीजीएम कोर्ट में 167 ऐसे मामले थे, जिनमें चार्जशीट आ चुकी थी, लेकिन उन आरोप पत्रों को न तो रजिस्टर पर अंकित किया गया और न ही जज के सामने प्रस्तुत किया गया. जिसके चलते जज ने संबंधित प्रकरणों में 4 सीट का संज्ञान नहीं लिया और चार्जशीट प्रस्तुत नहीं किए जाने से मुलाजिमों को सीधा फायदा पहुंचा. आरोपी बरी हो गए. अगर यह चार्जे शीट जज के सामने शामिल हो जाती तो मुकदमे में बरी हो जाने वाले आरोपी सलाखों के पीछे होते.

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