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एक ऐसी मजार जहां रखे मुगदर को जो मुरादी उठा लेता है, उसकी मुराद होती है पूरी

यूपी के हरदोई में दुनिया का पैदल भ्रमण करने वाले मकदूम शाह जहानिया की मजार स्थित है. वहीं इस मजार पर एक मुगदर भी मौजूद है. मुगदर की मान्यता है कि जो मुरादी इस मुगदर को उठा लेता है उसकी मुराद बाबा पूरी कर देते हैं.

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Published : Jul 17, 2019, 9:12 AM IST

एक ऐसी मजार जहां रखे मुगदर को उठा सकता है वही जिसकी मुराद होगी पूरी

हरदोई: जिले में यूं तो तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल मौजूद हैं लेकिन बावन ब्लॉक में मकदूम शाह जहानिया की एक ऐसी मजार है. जिसका महत्व वाकई चौकाने वाला है. मकदूम शाह ने पूरी दुनिया का भ्रमण पैदल ही किया था औरजहां- जहां वे जाते थे वहां अमन और शांति का संदेश अपने मुरीदों को देते थे.इतना ही नहीं वे अपने जीवन से जुड़ी एक निशानी भी उस जगह छोड़ कर आते थे. जिसे उनका अंश मानकर उनके मुरीद आज भी उनकी इबादत करते हैं.

मकदूम शाह जहानिया की मजार पर दूर-दूर से लोग मत्था टेकने आते है.

ऐसी ही एक निशानी जिले की मजार पर भी मौजूद है.जो कि एक मुगदर है.ये कोई ऐसा वैसा मुगदर नहीं बल्कि एक चमत्कारी मुगदर है. इसे हर व्यक्ति नहीं उठा सकता.ये उससे ही उठता है, जिससे बाबा खुश होते हैं. या यूं कहें कि जिसकी मुराद बाबा पूरी करना चाहते हैं वहीं व्यक्ति इसे उठा सकता है. वहीं लोग दूर-दूर से यहां आज भी अपनी मुरादों को लेकर बाबा की इबादत करने आते हैं और मुगदर को उठाते हैं.

जानिए क्या है मजार पर पर रखे चमत्कारी मुगदर का रहस्य-

  • जिले के बावन ब्लॉक में मकदूम शाह जहानिया की मजार मौजूद है.
  • बाबा के दरबार में दूर-दूर से मुरादी मत्था टेकने आते है.
  • मजार पर रखा है चमत्कारी मुगदर.
  • मान्यता है जो मुरादी इस मुगदर को उठा लेता है उसकी सारी मुरादें पूरी हो जाती है.
  • बाबा जिस मुरादी से नाराज या उसकी मुराद पूरी नहीं करना चाहते वो मुरादी मुगदर को नहीं उठा पाता, चाहे वह कितना भी ताकतवर हो.
  • वहीं बाबा के खुश होने पर एक बच्चा भी इस मुगदर को बड़ी ही आसानी से उठा लेता है.
  • मुगदर एक या दो सौ सालों से नहीं बल्कि 5 सौ से अधिक वर्षों से मौजूद है.
  • मुगदर का रहस्य जानने विशेषज्ञ कई बार मजार पर आए.
  • विशेषज्ञों को निराश होकर जाना पड़ा और मुकदर के बारे में कुछ पता नहीं लगा सके.

ये बाबा मकदूम शाह जहानिया की मजार है.उन्होंने पैदल ही पूरी दुनिया का भ्रमण किया था. वे जहां- जहां जाते थे. वहां- वहां अपनी एक निशानी छोड़ आते थे. कहीं कपड़े, कहीं चप्पल. यहां उन्होंने इस मुगदर को छोड़ा. बाबा यमन के रहने वाले थे और ये मजार यहां करीब 5 सौ से अधिक वर्षों से मौजूद है.

पिछले वर्ष बाबा की याद में 226वां उर्स मनाया गया था. यहां आने वाले मुरीद दिल मे अपनी मुराद मान कर इस मुगदर को उठाने का प्रयास करते है. अगर उस मुरीद की वो मुराद जायज होती है या बाबा उसे पूरा करना चाहते हैं. उससे ये मुगदर उठ जाता है लेकिन जिसकी मुराद बाबा पूरी नहीं करना चाहते उससे ये मुगदर नहीं उठता.
-मोईनुद्दीन खान, महामंत्री, मजार कमेटी

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