हरदोई:देश में व्याप्त वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान जहां चिकित्सकों में वायरल फीवर और कोविड को लेकर असमंजस की स्थिति बरकरार है तो वहीं मरीजों और उनके तीमारदारों को भी सुचारू रूप से इलाज नहीं मिल पा रहा है. मौसमी बीमारी ने भी लोगों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया है. कोरोना वायरस और मौसमी बीमारियों के लक्षण लगभग समान होने से डॉक्टरों को भी समस्याएं आ रही हैं, लेकिन इस समस्या का हल डॉक्टरों ने निकाल लिया है.
डॉक्टर मौसमी बुखार से ग्रसित मरीजों को भी वही ट्रीटमेंट दे रहे हैं, जो कोविड के मरीजों को दिया जाता है. डॉक्टरों द्वारा तैयार की गई यह रणनीति कारगर भी साबित हो रही है.
मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज
हरदोई जिला अस्पताल में इस वर्ष भी मौसमी बुखार के हजारों मरीज रोजाना ओपीडी में आ रहे हैं. रोजाना तकरीबन 500 से एक हजार पर्चे ओपीडी में कट रहे है और जांच के लिए इन मरीजों के ब्लड सैम्पल पैथोलॉजी में जा रहे हैं. वहीं यहां 2 हजार के आसपास मरीज रोज ओपीडी में आते हैं, जिनमें से महज एक हजार के आसपास मरीजों को ही इलाज मिल पा रहा है. इसका अहम कारण कोरोना वायरस का भय है.
निराश होकर लौट रहे लोग
एक तरफ मौसमी बुखारों का प्रकोप तो अन्य मर्जों से ग्रसित मरीजों को भी कोविड के कारण उस प्रकार इलाज नहीं मिल पा रहा है, जिस प्रकार मिलना चाहिए. घंटों लाइन में खड़े होने के बाद भी लोग निराश होकर वापस घर लौट जाते हैं. सुबह ओपीडी खुलने से पहले ही जो लोग लाइन में लग जाते हैं, उन्हें 2 बजे तक इलाज मिल जाता है. अन्यथा मरीजों को बिना इलाज कराए ही वापस जाना पड़ता है. इस पर भी जिन मरीजों को डॉक्टर देख लेते हैं, उनको भी अस्पताल में कोविड का एंटीजन टेस्ट कराने के नाम पर दौड़ लगवाई जा रही है. परिणाम स्वरूप अन्य बुखार या बीमारियों से ग्रसित मरीज बेहाल हैं और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं.
मौसमी बुखार या कोरोना संक्रमण
देश में व्याप्त कोरोना महामारी के दौरान चल रहे मौसमी वायरल बुखारों में चिकित्सकों के लिए ये तय करना बेहद मुश्किल हो गया है कि मरीज के लक्षण कोरोना के हैं या फिर मौसमी बुखार के. ऐसे में मरीजों को भी इलाज काफी देरी के बाद मुहैया हो रहा है तो डॉक्टर भी असमंजस की स्थिति में हैं. एक तरफ मरीज कोरोना के भय के कारण अस्पतालों से दूरी बनाए हुए थे तो अब मौसमी बुखार के प्रकोप के चलते उन्हें मजबूरन अस्पताल की दौड़ लगानी पड़ रही है. उसके बाद कोरोना टेस्ट के लिए भी उन्हें अस्पताल में एंटीजेन टेस्ट कराने के लिए आइसोलेशन वार्ड में जाना पड़ रहा है, जिससे वे अगर संक्रमित नहीं भी हैं तो उनको संक्रमित होने का डर सताने लगता है. वहीं जो लक्षण कोरोना के है, वही लक्षण मौसमी बुखार के जैसे, सर्दी-खांसी, कमजोरी, जुखाम आदि हैं. ऐसे में डॉक्टर भी मरीजों को अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं और कोरोना और वायरल फीवर में अंतर करने में उन्हें काफी समय लग रहा है, जिस कारण मरीजों को समय से इलाज न मिल पाने से उनकी समस्याएं कम होने के बजाय और बढ़ती जा रही हैं।
मरीजों ने बयां किया दर्द
ईटीवी भारत की टीम ने जब जिला अस्पताल में जाकर स्थिति का जायजा लिया तो जानकारी हुई कि यहां मरीजों को उस प्रकार इलाज नहीं मिल पा रहा, जिस प्रकार पिछले वर्ष मौसमी बुखार का इलाज चिकित्सक कर रहे थे. वहीं मरीजों में भी कोरोना को लेकर काफी भय बना हुआ है. मरीजों ने बताया कि घण्टों लाइन में लगे रहने के बाद भी उन्हें इलाज नहीं मिल रहा. साथ ही कोरोना के कारण अन्य मर्जों का इलाज भी अस्पताल में सुचारू रूप से नहीं हो रहा है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जब ईटीवी भारत की टीम ने इस मामले पर कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात की तो उनमें से निजी अस्पताल के एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित शर्मा ने सबसे पहले इस असमंजस की स्थिति को स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि कोरोना और मौसमी बुखार दोनों ही अवस्था में व्यक्ति के शरीर में जिस प्रकार के सिम्टम्स होते हैं, वो कहीं न कहीं एक समान ही हैं. ऐसे में अगर मरीज की कोविड जांच का इंतज़ार करेंगे तो उसके इलाज में देरी होने से समस्या बढ़ भी सकती है तो कोरोना के दौर में लापरवाही भरे रवैये के साथ इलाज करना भी उचित नहीं है.
डॉ. अमित शर्मा ने बताया कि वे अपनी स्वयं की बनाई हुई गाइडलाइन के आधार पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोई सर्दी-खांसी, जुखाम-बुखार के लक्षण वाला मरीज इस दौर में आता है तो वे उस मरीज को भी वही ट्रीटमेंट दे रहे हैं जो एक कोविड के मरीज को दिया जाता है.