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कोरोना वायरस या वायरल फीवर, डॉक्टर असमंजस में तो मरीज भयभीत - कोरोना और वायरल फीवर को लेकर असमंजस

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का खौफ जारी है. अब मौसमी बीमारियों ने और चिंता बढ़ा दी है. हालात यह हैं कि अस्पताल में कोई भी मरीज इलाज के लिए आता है तो सबसे पहले उसका कोविड-19 टेस्ट किया जाता है. कोरोना वायरस और वायरल फीवर को लेकर डॉक्टर असमंजस में हैं तो मरीज भयभीत नजर आते हैं. देखिए हरदोई से यह स्पेशल रिपोर्ट..

hardoi coronavirus special story
कोविड या वायरल फीवर को लेकर असमंजस की स्थिति में डॉक्टर और मरीज.

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Published : Sep 12, 2020, 8:17 PM IST

हरदोई:देश में व्याप्त वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान जहां चिकित्सकों में वायरल फीवर और कोविड को लेकर असमंजस की स्थिति बरकरार है तो वहीं मरीजों और उनके तीमारदारों को भी सुचारू रूप से इलाज नहीं मिल पा रहा है. मौसमी बीमारी ने भी लोगों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया है. कोरोना वायरस और मौसमी बीमारियों के लक्षण लगभग समान होने से डॉक्टरों को भी समस्याएं आ रही हैं, लेकिन इस समस्या का हल डॉक्टरों ने निकाल लिया है.

स्पेशल रिपोर्ट..

डॉक्टर मौसमी बुखार से ग्रसित मरीजों को भी वही ट्रीटमेंट दे रहे हैं, जो कोविड के मरीजों को दिया जाता है. डॉक्टरों द्वारा तैयार की गई यह रणनीति कारगर भी साबित हो रही है.

मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज
हरदोई जिला अस्पताल में इस वर्ष भी मौसमी बुखार के हजारों मरीज रोजाना ओपीडी में आ रहे हैं. रोजाना तकरीबन 500 से एक हजार पर्चे ओपीडी में कट रहे है और जांच के लिए इन मरीजों के ब्लड सैम्पल पैथोलॉजी में जा रहे हैं. वहीं यहां 2 हजार के आसपास मरीज रोज ओपीडी में आते हैं, जिनमें से महज एक हजार के आसपास मरीजों को ही इलाज मिल पा रहा है. इसका अहम कारण कोरोना वायरस का भय है.

निराश होकर लौट रहे लोग
एक तरफ मौसमी बुखारों का प्रकोप तो अन्य मर्जों से ग्रसित मरीजों को भी कोविड के कारण उस प्रकार इलाज नहीं मिल पा रहा है, जिस प्रकार मिलना चाहिए. घंटों लाइन में खड़े होने के बाद भी लोग निराश होकर वापस घर लौट जाते हैं. सुबह ओपीडी खुलने से पहले ही जो लोग लाइन में लग जाते हैं, उन्हें 2 बजे तक इलाज मिल जाता है. अन्यथा मरीजों को बिना इलाज कराए ही वापस जाना पड़ता है. इस पर भी जिन मरीजों को डॉक्टर देख लेते हैं, उनको भी अस्पताल में कोविड का एंटीजन टेस्ट कराने के नाम पर दौड़ लगवाई जा रही है. परिणाम स्वरूप अन्य बुखार या बीमारियों से ग्रसित मरीज बेहाल हैं और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं.

कोरोना जांच केंद्र के बाहर जुटी भीड़.


मौसमी बुखार या कोरोना संक्रमण
देश में व्याप्त कोरोना महामारी के दौरान चल रहे मौसमी वायरल बुखारों में चिकित्सकों के लिए ये तय करना बेहद मुश्किल हो गया है कि मरीज के लक्षण कोरोना के हैं या फिर मौसमी बुखार के. ऐसे में मरीजों को भी इलाज काफी देरी के बाद मुहैया हो रहा है तो डॉक्टर भी असमंजस की स्थिति में हैं. एक तरफ मरीज कोरोना के भय के कारण अस्पतालों से दूरी बनाए हुए थे तो अब मौसमी बुखार के प्रकोप के चलते उन्हें मजबूरन अस्पताल की दौड़ लगानी पड़ रही है. उसके बाद कोरोना टेस्ट के लिए भी उन्हें अस्पताल में एंटीजेन टेस्ट कराने के लिए आइसोलेशन वार्ड में जाना पड़ रहा है, जिससे वे अगर संक्रमित नहीं भी हैं तो उनको संक्रमित होने का डर सताने लगता है. वहीं जो लक्षण कोरोना के है, वही लक्षण मौसमी बुखार के जैसे, सर्दी-खांसी, कमजोरी, जुखाम आदि हैं. ऐसे में डॉक्टर भी मरीजों को अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं और कोरोना और वायरल फीवर में अंतर करने में उन्हें काफी समय लग रहा है, जिस कारण मरीजों को समय से इलाज न मिल पाने से उनकी समस्याएं कम होने के बजाय और बढ़ती जा रही हैं।

मरीजों ने बयां किया दर्द
ईटीवी भारत की टीम ने जब जिला अस्पताल में जाकर स्थिति का जायजा लिया तो जानकारी हुई कि यहां मरीजों को उस प्रकार इलाज नहीं मिल पा रहा, जिस प्रकार पिछले वर्ष मौसमी बुखार का इलाज चिकित्सक कर रहे थे. वहीं मरीजों में भी कोरोना को लेकर काफी भय बना हुआ है. मरीजों ने बताया कि घण्टों लाइन में लगे रहने के बाद भी उन्हें इलाज नहीं मिल रहा. साथ ही कोरोना के कारण अन्य मर्जों का इलाज भी अस्पताल में सुचारू रूप से नहीं हो रहा है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
जब ईटीवी भारत की टीम ने इस मामले पर कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात की तो उनमें से निजी अस्पताल के एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित शर्मा ने सबसे पहले इस असमंजस की स्थिति को स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि कोरोना और मौसमी बुखार दोनों ही अवस्था में व्यक्ति के शरीर में जिस प्रकार के सिम्टम्स होते हैं, वो कहीं न कहीं एक समान ही हैं. ऐसे में अगर मरीज की कोविड जांच का इंतज़ार करेंगे तो उसके इलाज में देरी होने से समस्या बढ़ भी सकती है तो कोरोना के दौर में लापरवाही भरे रवैये के साथ इलाज करना भी उचित नहीं है.

डॉ. अमित शर्मा ने बताया कि वे अपनी स्वयं की बनाई हुई गाइडलाइन के आधार पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोई सर्दी-खांसी, जुखाम-बुखार के लक्षण वाला मरीज इस दौर में आता है तो वे उस मरीज को भी वही ट्रीटमेंट दे रहे हैं जो एक कोविड के मरीज को दिया जाता है.

डॉक्टर अमित ने बताया कि सबसे पहले वे पूरी सावधानी के साथ पीपीई किट व अन्य एहतियात बरतने के साथ ऐसे मरीजों को भर्ती कर उनका इलाज करना शुरू करते हैं. एक से दो दिनों में रिपोर्ट आने पर अगर रिपोर्ट पॉजिटिव है तो उसी ट्रीटमेंट को आगे बढ़ा कर सम्बन्धित मरीज को कोविड हॉस्पिटल रेफर कर दिया जाता है. अगर रिपोर्ट निगेटिव आती है तो मरीज को उन दो दिनों तक दिए गए कोविड के ट्रीटमेंट से कोई नुकसान होने की संभावना नहीं होती और उसके ट्रीटमेंट में कुछ बदलाव कर उसकी मर्ज का डायग्नोसिस कर उसे ठीक किया जा रहा है.

डॉ. अमित शर्मा ने बताया कि वे अन्य डॉक्टरों से भी यही अपील करते हैं कि असमंजस की स्थिति मेंं मरीजों को कोविड का ही ट्रीटमेंट देकर इलाज करना शुरू कर देंं, जिससे कि कोविड पॉजिटिव व निगेटिव आने की दशा में व इस समयांतराल में उसे इलाज के अभाव में न रहना पड़े.

मरीजों को जागरूक होने की है खास जरूरत
एक अन्य फिजिशियन डॉ. सीपी कटियार से हुई खास बातचीत में उन्होंने कहा कि इस भयभीत स्थिति में आमजन के साथ ही डॉक्टरों को भी सावधान रहने की आवश्यकता है. वहीं वायरल फीवर की चपेट में अब लोग आने लगे हैं. ऐसे में कोरोना और वायरल के लक्षण एक से होने के चलते लोग भी कंफ्यूज है और डॉक्टर भी. इसका एक ही सरल उपाय है कि ऐसे मरीजों को शुरुआती दिनों से लेकर कोरोना रिपोर्ट आने तक वहीं इलाज दिया जाए जो एक कोविड संक्रमित मरीज को दिया जाता है.

डॉक्टर सीपी कटियार ने लोगों से भी यही अपील की है कि वे मौसमी बुखार को भी हल्के में न लें और लक्षण सामने आने पर घर में काढ़ा आदि का सेवन करते रहें. साथ ही बिना डरे चिकित्सकों से परामर्श लें, जिससे कि डॉक्टर उनका इलाज अपने स्तर से कर सकें.

'कोविड के ट्रीटमेंट से ही ट्रीट होंगे वायरल के मरीज'
ईटीवी भारत के साथ सीएमओ डॉ. सूर्यमणि त्रिपाठी ने हुई खास बातचीत में जानकारी दी कि इस वर्ष भी मौसमी बुखार के तमाम मरीज सामने आने लगे हैं. उन्होंने कहा कि लाजमी सी बात है कि मौसमी बुखार व कोविड के लक्षण समान होने के कारण तमाम समस्याएं सामने आरही हैं. इसलिए डॉक्टर मरीजों को सुचारू रूप से इलाज देने के लिए ऐसे मरीजों को कोविड के ट्रीटमेंट देकर उनकी रिपोर्ट न आने तक उनका इलाज कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस असमंजस की विषम परिस्थिति में जब कोविड भी है और वायरल भी तो इससे निपटने का एक मात्र यही उपाय है. तभी हम कोविड के और वायरल से ग्रसित मरीज को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवा सकेंगे. इसी के साथ उन्होंने अन्य तमाम पहलुओं पर भी चर्चा की.

क्या कहते हैं आंकड़े
जिले में पिछले वर्ष की तुलना में इस साल मौसमी बुखार के ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं. पिछले वर्ष जिले में हर महीने इस सीजन में रोजाना 250 से 400 तक ब्लड सैम्पल लिए जाते थे. साथ ही ओपीडी में 500 मरीज रोजाना आते थे, जो मौसमी बीमारियों से ग्रसित थे. इन जांच के लिए गए सैम्पलों में पिछले वर्ष टाइफाइड के लगभग ढाई हजार, मलेरिया के 500, खांसी-जुखाम व बुखार के साढ़े 5 हजार से अधिक मरीज सामने आए थे तो इस वर्ष अभी मौजूदा स्थिति में ही ये आंकड़ा पार हो गया है, जिससे चिकित्सक और अधिक भयभीत हैं.

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जिले में पॉजिटिव केस पाए जाने का रेट 3.5 फीसदी का है तो मौसमी बुखारों का आंकड़ा अभी तक का पिछले वर्ष से अधिक पहुंच गया है. अभी तक जिले में मौसमी बुखार के लगभग 5 हजार मरीज सामने आ चुके हैं. इस विषम परिस्थिति में चिकित्सकों मेंं मरीजों का इलाज करने के लिए सभी को वही ट्रीटमेंट देकर उनका इलाज करने की रणनीति तैयार की है जो कोविड मरीज को दिया जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसी रणनीति के आधार पर ही सभी मर्जों के मरीजों का इलाज संभव है. फिलहाल ये बनाई गई रणनीति कारगर भी साबित हो रही है.

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