गोरखपुर: पूर्वांचल समेत बिहार और नेपाल क्षेत्र से आने वाले गंभीर रोगियों के इलाज में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) अब नई पद्धति का सहारा लेने जा रहा है. पैथोलॉजी, रेडियो थेरेपी और एक्सरे, एमआरआई जैसी जांच के बाद भी बीमारियों के सटीक इलाज में सफलता नहीं मिलने पर अब 'जिनोम सीक्वेंसिंग' जैसी विधि का एम्स सहारा लेगा. इसके लिए एम्स में बहुत जल्द जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन स्थापित की जाएगी.
एम्स के बायो केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर शैलेंद्र कुमार द्विवेदी के अनुसार इस मशीन के जरिए बैक्टीरिया, फंगस और वायरस की जिनोम सीक्वेंसिंग करके बीमारियों की रोकथाम का प्रयास होगा. बायोकमिस्ट्री विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन लग जाने के बाद शोध कार्यों को भी मदद मिलेगी. विभिन्न बीमारियों के कारक बैक्टीरिया, वायरस, फंगस की जीनोम सीक्वेंसिंग कर उसकी रोकथाम के उपाय को भी ढूंढा जा सकेगा. यह भविष्य में होने वाली बीमारियों के रोकथाम का उपाय तलाशने में भी मदद करेगी. यदि कैंसर का कोई रोगी है तो जिनोम सीक्वेंसिंग से कैंसर के कारणों का पता लगाकर उसका सटीक उपचार किया जा सकेगा. इसके अलावा यदि उसके जीन में कोई अन्य बदलाव दिखता है. जिससे भविष्य में किसी बीमारी के होने के संकेत हैं तो उसकी भी रोकथाम की जा सकेगी. एम्स के पैथोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री विभाग में जीन सीक्वेंसर और सेंगर सीक्वेंसर मशीनें लगाने की तैयारी हो चुकी है, जो इस प्रकार की समस्याओं का समाधान करेगी.