गोरखपुर: महान संत कबीरदास की आज (14 जून) जयंती है. जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को कबीर दास का जन्म वाराणसी में हुआ था. गोरखपुर में कबीरदास के मंदिर की दशा बेहद चिंतनीय है. मंदिर की जमीन पर दबंगों ने अतिक्रमण कर रखा है. मंदिर को विकसित करने पर स्थानीय जिला प्रशासन कुछ करता नजर आ रहा है. वहीं, अनुयायी और संत भी मंदिर के विकास को लेकर कोई गंभीर पहल करते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे ऐतिहासिक महत्व वाला यह मंदिर पहचान खोता नजर आ रहा है.
गोरखपुर का चरण पादुका मंदिर:गोरखपुर के इस मंदिर को "चरण पादुका मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है. कबीर से जुड़े इस ऐतिहासिक महत्व की धरोहर को न तो पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है और न ही यह लोगों की जानकारी का ही विषय बन पा रहा है.
"आईने गोरखपुर" में मंदिर का उल्लेख:गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' में इस बात का साफ उल्लेख है कि कबीर दास जी अपनी मगहर यात्रा के दौरान गोरखपुर में रात्रि प्रवास किया था. ऐसी मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया था. उन दिनों मगहर में सूखा पड़ा था. बिजली खां को उम्मीद थी कि कबीर दास के आशीर्वाद से यह संकट खत्म हो जाएगा.
मिथक तोड़ने मगहर पहुंचे कबीरदास:उधर, कबीरदास इस मौके का उपयोग एक मिथक को तोड़ने के लिए भी करना चाहते थे. तब यह आम धारणा थी कि मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म लेना पड़ता है और इसी भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर काशी से चलकर मगहर की यात्रा पर निकले तो उनका मगहर से पहले का जो पड़ाव स्थल बना वह गोरखपुर के घासी कटरा बना. इसी स्थान को आज उनके चरण पादुका मंदिर के रूप में जाना जाता है.