गोरखपुर:पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मासूम बच्चों पर कहर बरपा रहे बुखार को देखते हुए गोरखपुर का स्वास्थ्य महकमा और जिला प्रशासन दोनों अलर्ट मोड पर आ गया है. पिछले एक सप्ताह से यहां के जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में बुखार से पीड़ित बच्चे आ रहे हैं. बच्चों की संख्या को देखते हुए स्थिति को भांपकर बचाव और इलाज की मुकम्मल व्यवस्था महकमा कर रहा है. इसी बीच रविवार 12 सितंबर को मुख्यमंत्री के गोरखपुर पहुंचने के कार्यक्रम से भी महकमे के अधिकारी सहमे हुए हैं. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री इस दौरे में जहां अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में शामिल होंगे. वहीं उनकी समीक्षा का सबसे बड़ा बिंदु स्वास्थ्य व्यवस्था की तैयारियों की समीक्षा होगी. क्योंकि गोरखपुर क्षेत्र पहले से ही इंसेफलाइटिस की बीमारी की वजह से मासूम बच्चों के लिए काल बनता रहा है. जिसकी शुरुआत बुखार के साथ ही होती है. ऐसे में अस्पतालों में बढ़ती बच्चों की संख्या को देखते हुए तैयारी महत्वपूर्ण हो गई है.
डेंगू और इंसेफेलाइटिस से बचाव की तैयारियों में जुटा गोरखपुर स्वास्थ्य विभाग, बच्चों के बुखार पर विशेष नजर
पश्चिमी यूपी में मासूम बच्चों पर कहर बरपा रहे बुखार को देखते हुए गोरखपुर का स्वास्थ्य महकमा और जिला प्रशासन दोनों ही अलर्ट मोड पर हैं. पिछले सप्ताह से यहां के जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में बुखार से पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफे को देखते हुए प्रशासन तैयारियों में जुट गया है.
विभाग इंसेफलाइटिस के बचाव के लिए स्वच्छता और शुद्ध पेयजल पर जहां जोर देने वाला है तो वहीं चूहों की वजह से इंसेफेलाइटिस की चपेट में आने से बच्चों को बचाना है. गोरखपुर वायरोलॉजी सेंटर के शोध से इस बात का पता चला है कि घरों में धमाचौकड़ी मचाने वाले चूहों और उनमें पलने वाले पिस्सू और स्क्रब टाइफस जीवाणु इंसेफलाइटिस का कारण बनते हैं. पूर्वांचल में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम(AES) के 65 फीसदी मामलों का कारण स्क्रब टाइफस ही है तो वहीं जापानी इंसेफलाइटिस लगभग खत्म हो चुकी है. इस पर भी काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है. जिले के सीएमओ डॉ. सुधाकर पांडेय कहते हैं कि फिलहाल इंसेफलाइटिस नियंत्रण में है. डेंगू के 2 मरीज मिले हैं. वह गोरखपुर के नहीं है, लेकिन इससे उन्हें सावधानी बरतने की तैयारियों में और बल मिलेगा. साथ ही अस्पतालों में आने वाले बच्चों के लिए डॉक्टरों की विशेष टीम तैयार की गई है.
यह माना जा रहा है कि इंसेफलाइटिस की बीमारी में 2017 के बाद योगी सरकार के दस्तक और संक्रामक रोग नियंत्रण अभियान में करीब आधा दर्जन विभागों के समन्वय बनाने से सफलता मिली है. जो स्वच्छता, सफाई और शुद्ध पेयजल को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने में सफल हुए हैं. मौजूदा वर्ष की बात करें तो अभी तक 123 मामले एईएस के आए हैं. जिसमें कुल 9 की मौत हुई है. जबकि जापानी इंसेफलाइटिस के मामले अभी तक सामने ही नहीं आए इसलिए इसमें मौत का आंकड़ा शून्य है. वहीं 2016 में योगी सरकार आने से पहले एईएस के 627 मामले आए थे. जिनमें 118 की मौत हुई थी तो जापानी इंसेफलाइटिस के 29 मामलों में 9 की मौत हुई थी. योगी सरकार की इस बीमारी में रोकथाम के लिए तेजी आने के पीछे 2017 में भयंकर रूप से एईएस के 774 मामले सामने आए थे. जिसमें 105 की मौत हुई थी. जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस के 42 मामलों में 8 मासूमों ने अपनी जान गंवाई थी. इसके बाद के वर्षों में 2018, 19 और 20 में विभागीय पहल पर इसमें बहुत ज्यादा गिरावट आई है, लेकिन इस बीच डेंगू की रोकथाम को लेकर मेडिकल कॉलेज में 70 और जिला अस्पताल में 11 बेड तैयार किये गए हैं. 20 डॉक्टर और 25 स्टाफ नर्स इसकी निगरानी करेंगे.
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