गोरखपुर:गरीबी में पले बढ़े, लेकिन शिक्षा के प्रति ललक से बीकॉम की पढ़ाई पूरी करने वाले, गोरखपुर के गंगाराम ने मौजूदा समय में एक ऐसी आटा चक्की बनाई है, जो साइकिल से चलती है. इस आटा चक्की से सिर्फ गेहूं ही नहीं बल्कि दानेदार कोई भी चीज आसानी से पीसी जा सकती है. इस मशीन से पीसा गया गेहूं का आटा पूरी तरह फाइबर युक्त तैयार होता है. जुगाड़ से तैयार की गई इस आटा चक्की के इनोवेशन से गंगाराम को खूब प्रसिद्धि मिल रही है. बीकॉम की शिक्षा के बाद साइकिल का पंचर बनाने से लेकर कई तकनीकी काम में जुड़ गए, जिसका नतीजा था कि इन्होंने पिछले आठ 10 सालों में खेती-किसानी से लेकर कई तरह के ऐसे प्रयोगों को अंजाम दिया है, जिसकी चर्चा देश के आईआईटी संस्थानों में भी हुई. इसकी वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विज्ञान प्रसार निदेशालय समेत तमाम बड़ी संस्थाओं ने इन्हें सम्मान से नवाजा है.
गंगाराम की आटा चक्की 1 घंटे में 8 किली गेहूं पीसती है. लॉकडाउन में आया आइडिया, 10 हजार में बनी आटा चक्की
गंगाराम कहते हैं कि कोरोना की महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद था तो गेहूं की पिसाई और आटे की जरूरत ने उन्हें इस प्रयोग की ओर खींचा. करीब 10 हजार रुपये की लागत और 2 महीने के कठिन परिश्रम से उनकी आटा चक्की तैयार हुई. उन्होंने कहा कि साइकिल चलित यह आटा चक्की सेहत के लिए भी काफी उपयोगी है. साइकिल चलाने से जहां भरपूर एक्सरसाइज हो जाती है. वहीं यह घुटने के लिए भी बेहद फ़ायदेमंद है. शहर के राम जानकी नगर में रहने वाले गंगाराम एक तकनीशियन परिवार से आते हैं. इनके पिता गोरखपुर के पहले प्लंबर के रूप में जाने जाते हैं. इनकी आटा चक्की को लोग देखने भी खूब आते हैं और प्रशंसा भी जमकर करते हैं. गंगाराम की खोज से उनके पिता बेहद प्रसन्न हैं. वह बीकाम की शिक्षा को ही उनकी सफलता का कारण मानते हैं. वह इस बात से भी बेहद खुश हैं कि उनके परिवार में तकनीकी कौशल कूट-कूट कर भरा है.
गंगाराम को अपने कई आविष्कारों के लिए किया गया है सम्मानित. चलेगी साइकिल और बनेगी बिजली
गंगाराम इसके पहले कई और कृषि यंत्रों को तैयार कर चुके हैं. उन्हें आईआईटी कानपुर, आईआईटी इंदौर, बीएचयू और एमएमएमटीयू के विज्ञान प्रदर्शनी में भी बुलाकर सम्मानित किया जा चुका है. गंगाराम अपने प्रयोगों से खुश और उत्साहित दोनों हैं, लेकिन वह चाहते हैं कि इन्हें एक बड़ी बाजार और पहचान मिले, जिससे उनकी समृद्धि का रास्ता खुल सके. वह अपने अगले प्रयोग पर भी जुटे हुए हैं, जिसका नाम उन्होंने दिया है 'चलेगी साइकिल और बनेगी बिजली'. बिजली उत्पादन का यह यंत्र भी उनकी साइकिल आधारित तकनीकी सोच पर ही विकसित किया जा रहा है, जिसके माध्यम से बिजली पैदा होगी और वह बैटरी में स्टोर होगी. यह बिजली किसी भी घर के लिए 10 बल्ब, चार पंखे के लिए पर्याप्त होगी. वह चाहते हैं कि सरकार संस्थागत नहीं बल्कि व्यक्तिगत खोजों को अंजाम देने वालों को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक मदद की नीति बनावे, जिससे हुनरमंद लोग और आगे बढ़ सकें.