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मत्स्य पालक जो कभी पाई-पाई को मोहताज था, आज दे रहा हैं कई लोगों को रोजगार - मछली पालने से हो रही की गुना कमाई

गोरखपुर के अजय सिंह मछली पालकों के लिए नजीर माने जाते हैं. मछलियों के कारोबार मे उन्होंने महारथ हासिल कर पूर्वांचल में एक मिसाल कायम की है. आज वो कई परिवारों की रोजीरोटी का जरिया बन गए हैं. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बदौलत शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है.

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मत्स्य पालक बना कई परिवारों का रोजगार का साधन.

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Published : Feb 12, 2020, 7:37 PM IST

गोरखपुर: जिले के अजय सिंह मछली पालकों के लिए नजीर माने जाते हैं. लोग उनसे प्रशिक्षण लेकर मछली पालने का काम शुरू करते हैं. मछलियों के कारोबार में उन्होंने महारथ हासिल कर पूर्वांचल में एक मिसाल कायम की है. बैंक से कर्ज लेकर अजय सिंह ने मछली पालन शुरू किया था जो अब कई परिवारों की रोजीरोटी का जरिया बन गया है.

मत्स्य पालन क्षेत्र की नजीर बने अजय
अजय सिंह एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनको मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए नजीर माना जाता है. पूर्वांचल में उनकी एक अलग पहचान है. गुजरात में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय मेले में उनको सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बदौलत शून्य से शिखर तक का सफर तय किया. एक दिन ऐसा भी था जब B. ED करने के बाद नौकरी की तलाश में वह दर-बदर भटक रहे थे. बेरोजगारी के साथ पाई-पाई को मोहताज थे.

मत्स्य पालक बना कई परिवारों का रोजगार का साधन.

दोस्त ने दी थी मछली पालने की सलाह
एक दिन उनके करीबी दोस्त महराजगंज के हैचरी मालिक संजय श्रीवास्तव ने उन्हें मछली पालन करने की सलाह दी. उन्होंने गोरखपुर मुख्यालय से 25 किमी की दूर भटहट कस्बे से सटे पोखर भिंडा गांव की अपनी पुश्तैनी लो लैंड जमीन पर गड्ढा खुदवाया और बैंक से लोन लेकर मछली पालन का काम शुरू किया. 18 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद अजय सिंह ने करोड़ों का अम्पायर खड़ा कर दिया. वे आर्थिक रूप से इस कदर मजबूत हुए कि कई परिवारों के लिए रोजीरोटी का एक जरिया बन गए हैं.

मत्स्य विभाग भी अजय को मानता है नजीर
आस-पास के जनपदों में मत्स्य पालन का काम शुरू करने वाले लोग उनसे प्रशिक्षण लेने जाते हैं. मत्स्य विभाग भी उन्हें दूसरों के लिए नजीर मानता है. आधुनिक प्रशिक्षण देने के लिए नामी गिरामी कम्पनियां देश-विदेश से प्रशिक्षण हासिल करने के लिए भेजती हैं. अजय सिंह बताते हैं कि बीते दिसंबर ग्रोवेल सिड्स कम्पनी ने उन्हें मलेशिया टूर पर भेजा था. यहां उन्होंने मछली पालन के नए-नए तरीके देखे. पालकों से मछली पालने का तौर तरीका सीखा और कम लागत में अधिक आय की जानकारी हासिल की.

हैचरी डाल कर स्पान सीड का उत्पादन करने लगे
मछली से आय बढ़ने लगी और हालत ठीक होने लगी तो उन्होंने हैचरी डालकर स्पान और सीड का उत्पादन करना शुरू किया. अजय सिंह हर साल लाखों रुपये के मछली के सीड स्पान की बिक्री करते हैं. उनकी हैचरी में रोहू, नैनी, चाइनीज रोहू, भाकुर पगांस (बैकर) ग्रास सहित 6 किस्म की मछलियों का उत्पादन होता है. फरवरी से अगस्त के बीच स्पान और सीड्स का कारोबार चलता है. वहीं सितंबर से जनवरी तक बड़ी मछलियों की ब्रीडिंग का कारोबार किया जाता है. इन सीड्स की सप्लाई नेपाल एवं पूरे पूर्वोत्तर प्रदेशों में की जाती है.

कारोबार बढ़ने पर देने लगे रोजगार
जब उनका कारोबार बढ़ने लगा तो मजदूरों की आवश्यकता पड़ने लगी. मछली पकड़ने से लेकर देखभाल तक के लिए उन्होंने कई स्थायी और अस्थायी मजदूरों को रोजगार दिया है. पड़ोसी जनपद महराजगंज में भी उनका करोबार बड़े पैमाने पर चलता है. परतावल ब्लॉक के पकड़ी बिसलपुर गांव में 32 एकड़ में एवं खुटहन बाजार में नौ एकड़ का तालाब लीज पर लेकर बड़ी मछलियों का कारोबार पैमाने पर करते हैं.

विशेषज्ञ की निगरानी में रहती हैं मछलियां
मछलियों के स्वास्थ्य की नियमित जांच के लिए एक विशेषज्ञ की तैनाती की गई है. चिकित्सक मछलियों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और बीमार होने पर उनका इलाज भी होता है. मछलियों को कब और क्या खुराक देनी है इसके लिए बकायदा चार्ट भी बना हुआ है.

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