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कॉप-14 सम्मेलन में बोले पीएम मोदी, 'ग्लोबल वॉटर एजेंडा बनाकर काम करने की जरूरत'

दिल्ली से सटे नोएडा में कॉप-14 का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में 196 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. इसमें पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर जोर दिया गया.

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Published : Sep 10, 2019, 5:02 AM IST

नोएडा में हुआ कॉप-14 सम्मेलन.

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: इन दिनों दुनिया की निगाहें दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा पर लगी हुई है. जहां यूएन के कॉन्फ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ यानी कॉप-14 का आयोजन किया गया है. कॉप-14 सम्मेलन में 196 देशों के प्रतिनिधि बदलते पर्यावरण में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को हो रहे नुकसान बढ़ते मरुस्थल जैसे विश्व के गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मंथन कर रहे है.

नोएडा में हुआ कॉप-14 सम्मेलन.

'पानी ग्लोबल समस्या'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन को संबिधित करते हुए कहा कि पानी की समस्या अब किसी एक देश, एक क्षेत्र की नहीं रही है, अब ये ग्लोबल बन चुकी है. इसलिए इसको हल करने के लिए ग्लोबल वॉटर एजेंडा बना कर काम करने की जरूरत है.

भारत ने जल संबंधी मुद्दों के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाया है. उन्होंने कहा कि भारत में प्रकृति और धरती की पूजा की जाती रही है, लेकिन मानवीय गतिविधियों की वजह से जलवायु परिवर्तन, धरती का क्षरण और जैव विविधता में जो क्षति हुई है उसे मानवीय प्रयासों से ही ठीक किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री ने पौधे लगाने पर जोर दिया
भारत में जैविक खाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. माइक्रो इग्नीशियन तकनीक से किसानों की आय दोगुनी हुई है. प्रधानमंत्री पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़-पौधे लगाने पर जोर दिया. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में पेड़ और पौधे लगाने की मुहिम शुरू हुई है, उसकी वजह से भारत में वन क्षेत्र 8 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है.

सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर लगा बैन
प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के लिये प्लास्टिक को सबसे हानिकारक बताया और इसके लिए मुहिम चलाने पर जोर दिया. उन्होंने भारत में सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर बैन लगाने की बात कही. प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया में सिंगल यूज्ड प्लास्टिक को गुड बाय कहने का समय आ गया है. प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए हर तरह का सहयोग देने की बात कही.

खतरनाक हैं आंकड़े
बढ़ते मरुस्थल जैसे विश्व के गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मंथन कर रहे प्रतिनिधि का कहना है कि वैज्ञानिक आंकलन में सामने आया है कि सूखा, बाढ़, वनों में आग, भूमि का कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है.

खाद्य समेत अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दुनिया ने सत्तर फीसद जमीन का प्राकृतिक स्वरूप बदल दिया है. इससे करीब दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. दीर्घकालिक प्रबंधन न करने की वजह से भूमि का काफी बड़ा भाग अनुपयोगी हो चुका है. जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक सात सौ मिलियन लोग पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे. इसके प्रति सचेत रहते हुए कदम उठाने होंगे.

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