नोएडा: किसी मशहूर शायर ने खूब लिखा कि 'लिखा परदेश किस्मत में वतन की याद क्या करना, जहां बेदर्द हाकिम है वहां फरियाद क्या करना'. यह शायरी भले ही काफी समय पहले लिखी गई पर इसका जीता-जागता उदाहरण कोविड-19 महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के ऊपर जरूर चरितार्थ हो रहा है. मजदूर जहां रोजी रोटी कमा रहे थे वहां सब कुछ बंद हो गया, जब अपने घर के लिए निकले तो प्रशासन ने उन्हें जबरन शेल्टर होम में भेज दिया. अब प्रवासी मजदूरों के सामने यह समस्या है कि वह अपनी बात किससे कहें और उनकी कौन सुनेगा. वतन की याद उन्हें जरूर आ रही है पर वतन जाने में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
प्रवासी श्रमिकों को ले जाया गया शेल्टर होम 'प्रशासन द्वारा दी जा रही मदद काफी नहीं है'
दिल्ली, राजस्थान, सोनीपत सहित तमाम एनसीआर के क्षेत्र से पैदल बिहार और यूपी के विभिन्न जिलों में जाने के लिए लॉकडाउन के दौरान चले मजदूरों से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने कहा कि 'प्रशासन द्वारा दी जा रही मदद काफी नहीं है, जिसके चलते घर चलाना बड़ा ही मुश्किल है. वहीं जिस रोजगार को हम कर रहे थे, वह बंद हो चुका है. कंपनियां भी बंद हैं और रेहड़ी पटरी लगाते थे उस पर भी रोक लगा दी गई, जिसके चलते दो वक्त की रोटी नसीब होना मुश्किल हो गया, इसलिए हम लोग अपने घरों के लिए चल दिए हैं.' मजदूरों ने यह भी कहा कि प्रशासन या शासन द्वारा दिए जा रहे राशन से इस लॉकडाउन के दौरान पेट भरना संभव नहीं है.
प्रशासन का कहना
पैदल अपने घर विभिन्न स्थानों से जाने वाले प्रवासी मजदूरों को लेकर प्रशासन का कहना है कि पैदल, साइकिल, रिक्शा, ई-रिक्शा के साथ ही ट्रकों या अन्य किसी कमर्शियल वाहन पर बिना अनुमति के कोई भी व्यक्ति बिहार ,झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश या यूपी के किसी जिले में जाता हुआ पाया जा रहा है तो उसे शेल्टर होम में रखा जा रहा है, जहां उसके खाने पीने की व्यवस्था के साथ ही उसे उसके घर भेजने की भी व्यवस्था की जा रही है.