फतेहपुर: कोरोना महामारी से लोगों के स्वास्थ्य पर तो दुष्प्रभाव पड़ा ही है. साथ ही उनकी रोजी-रोटी भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. इसके चलते देश भर में आर्थिक एवं औद्योगिक इकाइयां ठप हो गईं, जिससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए और घरों को लौट आए. ऐसे में उनके सामने दो वक्त की रोटी का संकट गहरा गया. ऐसे में इस कठिन समय में चूल्हे-चौके तक सीमित रहने वाली महिलाओं ने भी घर चलाने का बीड़ा उठा लिया. वह घर से निकलकर काम करके न सिर्फ स्वावलंबी बन रही हैं, बल्कि घर का खर्च भी बखूबी उठा रही हैं.
13 ब्लॉकों की 1000 महिलाएं बढ़ रहीं आगे
ग्रामीण अंचल की महिलाएं राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत संचालित समूहों से जुड़कर सिलाई का कार्य कर रही हैं. प्रशिक्षण लेने के उपरांत पहले तो उन्होंने मास्क सिलकर अपना घर खर्च चलाया. अब वह स्कूली बच्चों की ड्रेस सिलकर न सिर्फ अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा रही हैं, बल्कि अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी करवा रही हैं. जिले के 13 ब्लॉकों में करीब 1000 महिलाएं समूह से जुड़कर स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ रही हैं.
जेम पोर्टल पर इनके बनाए सामान बेचने की अनुमति
कल तक रूढ़िवादी विचारों के साथ जीने वाले समाज में आज महिलाओं का जज्बा एवं कार्यकुशलता देख उन्हें उनके परिवार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है. वर्तमान परिदृश्य में फतेहपुर की महिलाएं पुरुष प्रधान समाज के समक्ष महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही हैं. इससे पहले इनके द्वारा किए गए कार्यों की कुशलता को देखते हुए योगी सरकार भी इनकी सराहना कर चुकी है. इनके बनाए सामान की बिक्री सरकार द्वारा जेम पोर्टल पर किए जाने की अनुमति भी दी जा चुकी है. बता दें कि जेम पोर्टल पर सामान की बिक्री की अनुमति महज 5-6 जनपद की महिलाओं को ही मिली है, जिसमें फतेहपुर भी शामिल है.
कुछ इस तरह काम कर रहे ये कामगार
सिलाई का कार्य कर रही महिला कामगार ने बताया कि जब उसके पति बेरोजगार हुए तो यह विचार होने लगा कि अब घर का खर्च कैसे चलेगा. महिला ने बताया कि फिर वह इस समूह से जुड़ी, जिसमें काम करके पूरे परिवार का खर्च चलता है. उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी चल रही है. महिला कामगार ने बताया कि यहां सिलाई करके वह 300-350 रुपये तक प्रतिदिन कमा लेते हैं. इसमें उन्हें परिवार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है. वे बाहर जाकर काम करने में कोई रोक-टोक नहीं करती हैं बल्कि और अधिक प्रोत्साहित करते हैं.
इन महिलाओं ने उठाया घर चलाने का बीड़ा अपनी पढ़ाई के साथ-साथ परिवार का सहारा बनने के उद्देश्य से सिलाई का कार्य कर रही युवती सुचेता मौर्य ने बताया कि उनके पिता मजदूर और भाई प्लम्बर का कार्य करते हैं. लॉकडाउन में उनका काम काफी कमजोर हो गया, जिससे घर चलाने में समस्या आने लगी, जिसके बाद उन्होंने सिलाई का कार्य शुरू कर दिया. उनका सपना है कि वह अपने परिवार की मदद करें, जिसमें यह एक छोटा सा प्रयास है. उन्होंने आगे बताया कि यहां काम करके वह 250-300 रुपये तक कमा लेती हैं, जिससे वह अपने परिवार की मदद कर पाती हैं. अपने करियर को लेकर वह बताती हैं कि वह टीचर बनना चाहती हैं, जिसके लिए वह तैयारी भी कर रही हैं और तैयारी करने के साथ-साथ यहां काम भी करती हैं.
महिलाओं को दिया गया ड्रेस सिलने का कार्य
महिलाओं द्वारा ड्रेस सिलाई कार्य को लेकर ब्लॉक मिशन मैनेजर आलोक कुमार बताते हैं कि कंवर्जन प्रोग्राम के तहत बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा ड्रेस सिलने का कार्य समूह की महिलाओं को दिया गया है, जिसमें एक बच्चे पर दो जोड़ी ड्रेस के लिए कुल 600 रुपये खर्च होता है, जिसमें से सिलाई के लिए महिलाओं को स्कर्ट-शर्ट का 70 रुपये और पैंट-शर्ट का 75 रुपये दिया जाता है.
परिवार भी करता है इनकी मदद
ग्रामीण महिलाओं द्वारा सिलाई करके स्वावलंबी बनने पर मुख्य विकास अधिकारी सत्य प्रकाश कहते हैं कि जिला प्रशासन द्वारा राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत एक लाख ड्रेस सिलाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 276 समूह में 946 महिलाएं कार्य करके ड्रेस सिलने का कार्य कर रही हैं. इसमें प्रवासी मजदूरों के परिवार भी शामिल हैं. इस कार्य से महिलाएं न सिर्फ स्वावलंबी बन रही हैं, बल्कि सिलाई कार्य में भी दक्ष हो रही हैं, जिससे इसके समाप्त होने के पश्चात वह निजी स्तर पर कार्य करके अपना जीविकोपार्जन कर सकेंगी और किसी पर आश्रित नहीं रहेंगी.
प्रवासी मजदूरों के परिवार को काम मिलने पर वह बताते हैं कि इसमें से कई महिलाएं ऐसी हैं जिनके पति बाहर सूरत, मुम्बई आदि शहरों में कपड़े का ही कार्य करते थे. वह इन महिलाओं की काफी मदद कर रहे हैं. जहां कोई समस्या आती है तो वह बताते भी हैं. इस प्रकार उनकी मदद से सिलाई कार्य में काफी तेजी तो आयी ही है, साथ ही उनके घर की महिलाएं सिलाई कार्य में दक्ष हो रही हैं.