फर्रुखाबाद: यूपी के फर्रुखाबाद जिले के वरिष्ठ भाजपा विधायक सुशील शाक्य ने बीते दिन कहा था कि सिंह और ठाकुर जैसे शब्दों पर क्षत्रियों का एकाधिकार नहीं है. जितने भी क्षत्रिय महापुरुष हुए हैं, वे अपने नाम के साथ न तो सिंह लिखते थे और न ठाकुर. ये अंग्रेजों द्वारा दी गई पदवी होती थी. जिसे किसी भी जाति के व्यक्ति के नाम के साथ जोड़ दिया जाता था. इसी तरह सिंह शब्द लिखने का प्रचलन गुरु गोविन्द सिंह के समय से शुरू हुआ जो वीरता और बहादुरी का प्रतीक था. इसके बाद सभी सिख गुरुओं के नाम के साथ सिंह शब्द जोड़ा जाने लगा. हालांकि गुरुवार को प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि अगर मेरे बयान से किसी को क्षति पहुंची है तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूं.
भाजपा विधायक सुशील शाक्य ने बताया ठाकुर और सिंह शब्द की उत्पत्ति का इतिहास, ऐसे नाम से जुड़े ये शब्द
फर्रुखाबाद जनपद की अमृतपुर विधानसभा सीट से विधायक सुशील शाक्य ने भाजपा कार्यालय में महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में दिया था बयान.
बीते दिन शहर के आवास विकास स्थित भाजपा कार्यालय में महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में फर्रुखाबाद जनपद की अमृतपुर विधानसभा सीट से विधायक सुशील शाक्य ने कहा कि हमारे इतिहास में ठाकुर शब्द है ही नहीं. इसी तरह 200 साल से पहले सिंह शब्द था ही नहीं. उन्होंने महराणा प्रताप, आल्हा उदल, पृथ्वी राज चौहान और जय चंद्र से लेकर अयोध्या सम्राट भगवान राम चंद्र का उदाहरण देते हुए कहा कि इनमें से न तो कोई ठाकुर लिखता था और न सिंह. ठाकुर शब्द की शुरुआत अकबर के शासन काल से शुरू हुई और यह पद्म विभूषण, पद्म श्री जैसी पदवी थी. इस पदवी को अंग्रेजों के शासन काल में भी जारी रखा. एक भी राजा न तो ठाकुर था और न सिंह. उन्होंने कहा कि सिंह शब्द की शुरुआत खालसा पंथ से आई. गुरु गोविन्द सिंह ने अपने अनुयाइयों से कहा था कि सब अपने नाम के साथ सिंह लगाओ और सब सिंह की तरह दहाड़ो.