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बूटी देवी के संघर्ष की कहानी, इस तरह किया अनपढ़ से शिक्षक बनने का सफर

आदिवासी परिवार की बूटी देवी गरीब और महिला होने की वजह से अनपढ़ रहीं. शादी के बाद उन्होंने सभी रुकावटों को दरकिनार कर पढ़ना-लिखना सीखा. आज निसंतान विधवा बूटी देवी गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षित करने का काम करती हैं.

बूटी देवी के संघर्ष की कहानी, इस तरह किया अनपढ़ से शिक्षक बनने का सफर
बूटी देवी के संघर्ष की कहानी, इस तरह किया अनपढ़ से शिक्षक बनने का सफर

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Published : Mar 9, 2021, 11:53 AM IST

Updated : Mar 9, 2021, 1:04 PM IST

चित्रकूटः बूटी देवी प्री प्राइमरी की शिक्षक हैं. आदिवासी परिवार की बूटी देवी गरीब और महिला होने की वजह से शुरुआती दौर में अनपढ़ रहीं. लेकिन शादी होने के बाद उन्होंने सारे रुकावटों को दरकिनार कर पढ़ना-लिखना सीखा. आज वे गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठा रही हैं.

बूटी देवी के संघर्ष की कहानी

दूसरों के लिए प्रेरणा बनी बूटी देवी

बूटी देवी उन ग्रामीण महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत हैं, जो आर्थिक और सामाजिक तौर से कमजोर रहीं. पुरुष प्रधान समाज में स्त्री, निर्धनता के चलते घर की चार दीवारी में रहकर अपना पूरा जीवन भाग्य की नियति मान कर व्यतीत करने लगती हैं. लेकिन बूटी देवी ने अपनी कमजोर आर्थिक और सामाजिक स्थिति से ही अवसर खोजा. नतीजा आज वे दूसरों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं. वे आर्थिक रूप से मजबूत न होने के बावजूद अपना घरेलू खर्च आसानी से एक संमाजिक संस्था 'चाइल्ड फण्ड इंडिया' में काम कर चलाती हैं. जहां इन्हें बच्चों को ही शिक्षित करने का काम दिया गया है.

बूटी देवी का जीवन परिचय

चित्रकूट के मारकुंडी पाठा की रहने वाली बूटी देवी की शादी 13 साल से कम की आयु में ही हो गया था. बूटी देवी के ससुर बड़े जमींदार के खेतों में बंधुआ मजदूरी का काम किया करते थे. ससुर की मौत के बाद बूटी देवी के पति को उसी जमींदार के खेतों में काम करना पड़ा. जहां से वो धीरे धीरे ट्रैक्टर चलाना सीख गये. कई बार बूटी भी उन खेतों में अपने पति का हाथ बटाने जाया करती थी. बूटी देवी को ये काम पसंद नहीं था और किसी तरह वो अपने पति को समझा-बुझाकर मानिकपुर विकास खंड के गांव सरहट भाग आईं, और यहीं रहने लगी. बचपन से ही बूटी देवी को पढ़ने की ललक रही. वो बताती हैं कि जब शादी होकर वो अपने ससुराल पहुंची, तब लकड़ी जलाकर भोजन बनाते समय निकले कोयले से वो दीवारों और जमीन पर लिखना सीख रही थी. जिसकी शिकायत उनके जेठ ने पति से की थी. लेकिन पति ने उनका साथ दिया और बूटी बाई को स्लेट पेंसिल के साथ ही प्राथमिक पढ़ाई के लिए किताबें भी उपलब्ध कराईं. धीरे-धीरे बूटी देवी स्वयं पढ़ना सीख गईं. उनके जीवन में उस समय बहुत बड़ी विपदा आई, जब उनके पति की भी मौत हो गयी. बूटी देवी एकदम अकेली पड़ गई, लेकिन हिम्मत नहीं हारीं. उन्होंने अपने गांव के ही बच्चों को बुलाकर पढ़ाना शुरू किया. जिससे उनका समय भी अच्छा गुजरने लगा. धीरे-धीरे आसपास के गांव के वो बच्चे भी आने लगे. जिनके माता-पिता अति गरीब थे. मेहनत मजदूरी के लिए सुबह से ही घर से निकल कर चले जाते थे, ऐसे में कई ऐसे ग्रामीण भी थे जो जंगलों में लकड़ी काटने सुबह से ही निकल जाते थे. उनके बच्चे बिना देखरेख के गांव के गलियों में आवारा की तरह घूमते रहते थे. ये सबकुछ बूटी देवी से देखा नहीं जा सका और ऐसे बच्चों को इकट्ठा कर उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया. बूटी देवी के इस नेक काम को देखते हुए एक समाजसेवी संस्था ने प्री-प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी. जिससे बूटी देवी की आर्थिक मदद भी होने लगी है, और आसपास के गांव से लोग आकर बूटी देवी से निजी बातों को लेकर सलाह मशवरा भी करते हैं. वहीं बूटी देवी से ऐसी महिलाएं भी आकर मिलती हैं, जो शोषित हैं और उन्हें बूटी देवी जीने का तरीका, अपने अधिकारों के लिए लड़ने की हिम्मत और हौसला दे रही हैं.

Last Updated : Mar 9, 2021, 1:04 PM IST

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