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Published : Aug 15, 2021, 7:57 PM IST

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एक साथ 257 क्रांतिकारियों ने चूम लिया था फांसी का फंदा, बरगद का पेड़ है कुर्बानी का साक्षी

हम 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों की ऐसी ही कहानी से हम आपको रूबरू कराएंगे, जिन्होंने आजादी के लिए एक साथ फांसी के फंदे पर झूल गए थे. दरअसल, 1857 में जब मेरठ में मंगल पांडे ने क्रांति की शुरुआत की. उसके बाद क्रांतिकारियों ने रुहेलखण्ड को अंग्रेजों से क्रांतिकारियों ने आजाद करा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ कर 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों को बरेली कमिश्नरी में स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी. बरगद का ये पेड़ आज भी वीर सपूतों के बलिदान का साक्षी है.

कुर्बानी की दास्तां.
कुर्बानी की दास्तां.

बरेली:पूरा देश आज आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है.इस आजादी को पाने की कितनी बड़ी कीमत आजादी के दीवानों को चुकानी पड़ी. यह तब पता चलता है जब वर्तमान से हम अतीत की ओर जाते हैं. इतिहास के पन्नों में दर्ज शहादत की स्वर्णिम कहानी को समझते हैं. आज हम 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों की ऐसी ही कहानी से हम आपको रूबरू कराएंगे, जिन्होंने आजादी के लिए एक साथ फांसी के फंदे पर झूल गए थे. दरअसल, 1857 में जब मेरठ में मंगल पांडे ने क्रांति की शुरुआत की. उसके बाद क्रांतिकारियों ने रुहेलखण्ड को अंग्रेजों से क्रांतिकारियों ने आजाद करा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने धोखे से पकड़ कर 257 क्रांतिकारी वीर सपूतों को बरेली कमिश्नरी में स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी. बरगद का ये पेड़ आज भी वीर सपूतों के बलिदान का साक्षी है.

1857 में मेरठ से क्रांति की चिनगारी सुलगनी शुरू हुई थी. मेरठ के बाद आजादी का यह संग्राम रुहेलखण्ड तक पहुंचा. अंग्रेजो से मुक्ति के लिए रुहेलखण्ड में क्रान्तिकारियों ने एकत्र होना शुरू कर दिया. रुहेला सरदार खान बहादुर खान के नेतृत्व में सिपाहियों ने अंग्रेजों को रुहेलखण्ड से खदेड़ दिया. क्रान्तिकारियों ने दस महीने 5 दिन तक रुहेलखण्ड़ को अंग्रेजो से मुक्त रखा था.

कुर्बानी की दास्तां.
बरेली के लोग बताते हैं कि उस वक्त कुछ दोगली ताकतों ने अपने वतन के साथ गद्दारी की और अंग्रेजों का साथ दिया. जिसके चलते अंग्रेजों को रुहेलखण्ड से मुक्त कराने वाले खान बहादुर खान और उनके उन तमाम साथियों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया. बाद में उन सभी 257 क्रान्तिकारियों को कमिश्नरी में स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई थी.
बरगद का पेड़ है कुर्बानी का साक्षी
इतिहासकार बताते हैं कि बरगद के विशाल पेड़ पर क्रांतिकारी जब फांसी के फंदे पर झूल रहे थे तो उनके चेहरों पर देश के लिए कुर्बान होने के सन्तोष जनक भाव था. रुहेलखण्ड में कमिश्नरी में 257 क्रान्तिकारियों को फांसी दी गई थी और रुहेला सरदार खान बहादुर खान को कोतवाली के गेट पर फांसी दी गई थी.
कुर्बानी की दास्तां.


सपा की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उस बरगद के पेड़ के पास सभी 257 क्रांतिकारियों की याद में स्मृति स्तम्भ स्थापित कराया था. आज जब हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं. आज बरेली में लोग चाहते हैं कि आजादी के लिए हुई क्रान्ति और जान गंवाने वाले वीरों के बारे में आने वाली पीढ़ियां भी जान सकें इसके लिए स्मृति स्थल का जीर्णोद्धार किया जाए. ताकि आने वाली पीढियां ये जान सकें कि कैसे देश को आजादी के लिए हमारे वीरों ने कुर्बानियां दीं. उन वीरों को जान भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटे. हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने से भी परहेज नहीं किया.

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