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दारुल देवबंद को नहीं जरूरत है हमसे मान्यता की, इफ्तिखार अहमद जावेद की पत्रकारों से बातचीत

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि दारुल देवबंद को मदरसा मान्यता की जरूरत नहीं है. दारुल देवबंद 156 सालों से काम कर रहा है. उनकी जिस स्तर की मान्यता है उस स्तर पर देशभर में तमाम दर्जनों यूनिवर्सिटी उसके बच्चों को एडमिशन देती हैं.

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इफ्तिखार अहमद जावेद

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Published : Nov 1, 2022, 10:31 AM IST

बरेली:उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद बरेली पहुंचे. यहां उन्होंने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि दारुल देवबंद 156 साल पुराना है. उसे किसी बोर्ड से मान्यता लेने की जरूरत नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि यह सर्वे छोटे मदरसों के लिए है. ताकि, यह पता लगाया जा सके कि प्रदेश में कितने मदरसे चल रहे हैं और उसका कौन सा पाठ्यक्रम है.

दारुल देवबंद के सम्मेलन में मदरसों की मान्यता को लेकर कही गई बातों पर उन्होंने ने कहा कि दारुल देवबंद 156 सालों से काम कर रहा है. हमेशा से वह समाज में बेहतर काम कर रहा है. उसकी जिस स्तर की मान्यता है उस स्तर पर देशभर में तमाम दर्जनों यूनिवर्सिटी उसके बच्चों को एडमिशन देती हैं. उसे किसी मान्यता की जरूरत नहीं है.

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद दी जानकारी
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि ये दारुल देवबंद, नादमा, जामिया अशफिया, जामिया सल्फ़िया और एक रामपुर वाला है, जिस पर आजम खान ने कब्जा कर रखा है. इस तरह के 10 बड़े मदरसे हैं. जब हमारा मदरसा बोर्ड बना तब यह लोग 100 साल से काम कर रहे हैं. ये नए नहीं हैं. हमारा बोर्ड नया है. बोर्ड 2004 में एक्ट के जरिए जो नियमावली बनाई है, उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि ये जो 10 हाई प्रोफाइल मदरसे हैं. इनके यहां जाकर के आप ट्रेनिंग लीजिए और हमारी जो डिग्री है वो हमारे बोर्ड के इकुलेंट है. जब समकक्ष बता दिया है तो इन्हें हमारे यहां जोड़ने से कोई मतलब नहीं है. ये जो कह रहे हैं, ठीक कह रहे हैं.

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इफ्तिखार अहमद जावेद ने बताया कि देखिए हम बनारस से आए हैं. बनारस में यूनिवर्सिटी है. बनारस यूपी में है. आप कहेंगे कि बनारस की यूनिवर्सिटी की मान्यता यूपी बोर्ड से क्यों नहीं है. यूपी बोर्ड का अपना स्तर है. बीएचयू का अपना स्तर है. यूपी बोर्ड से मान्यता लेकर बीएचयू चलेगा. यह तो समझ में नहीं आ रहा है.

एक अपना सिस्टम होता है और उसकी अपनी मान्यता है. इन मान्यता के आधार पर आप दर्जनों यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर जाकर देखिए, जामिया यूनिवर्सिटी है. अलीगढ़ यूनिवर्सिटी है, लखनऊ यूनिवर्सिटी खुद है. ऐसे दर्जनों यूनिवर्सिटी हैं, जिसमें उनके बच्चों को डायरेक्ट एडमिशन मिलता है. 156 साल से क्या वजह है कि इनकी पूरी देश दुनिया में अलग पहचान है. इन्हें छोटे स्तर पर नहीं पहचाना चाहिए. 156 साल से दारुल देवबंद देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अपने शिक्षा और अपने विचारधारा के लिए जाना जाता है.

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि सर्वे दारुल देवबंद उनके लिए नहीं था. सर्वे अगर कर लिया तो उनके लिए ठीक है. हमारा उनका एक पैनल है. उनकी डिग्री हमारे डिग्री में फर्क है. इसे जोड़ने की जरूरत नहीं है. सरकार से इस बार में कोई बात ही नहीं हुई है न किसी बैठक में ऐसा तय हुआ है. यह छोटे मदरसों का सर्वे है. 7 साल से बोर्ड ने किसी मदरसे को मान्यता नहीं दी है. बहुत सारे मदरसा ऐसे ही चल रहे थे.

सर्वे की मदद से डेटा जुटा पा रहे हैं कि कितने मदरसे पूरे प्रदेश में है, जिन्हें अपने बोर्ड से जोड़ा जाए. कौन सा कार्यक्रम पढा रहे हैं, कौन सी बिल्डिंग है, इनका इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है और क्या-क्या व्यवस्था है. कितने बच्चे हैं कितने टीचर है. इसके लिए सर्वे का काम चल रहा था. सर्वे की मदद से उन मदरसों को जो पिछले 7 वर्षों में खुले हैं, खुद हमारे बोर्ड से जुड़ना चाहते हैं. उनके साथ हम काम करेंगे.

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