बाराबंकी: चुनावी मौसम में चारों ओर नेतागण तोहफे और घोषणाएं बांटने में लगे हैं. ऐसे समय में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो गन्ने के सूखे पत्तों से अपनी छत बनाने को मजबूर हैं. इनके गांव में बिजली पहुंच गई है, लेकिन इससे रोशन करने वाला आशियाना ही यहां नदारद है. इनका कहना है कि नेता बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक वे जीत नहीं जाते. जीतने के बाद उन्हें ये वादे याद नहीं रहते.
इन गांवों में पूरे नहीं हुए नेताओं के वादे लोकसभा चुनाव के इस दंगल में सभी नेता वादों का दांव खेलने में लगे हैं, लेकिन जनता इन वादों की सच्चाई को भलीभांति जानती है. इन्हीं वादों की पड़ताल के लिए ईटीवी की टीम पहुंची रामनगर विधानसभा क्षेत्र में स्थित गांव नारायनापुर. इस गांव की सड़क पर हमें ईंट या गिट्टी नहीं मिली. चलते-चलते हमारी टीम गांव के भीतर पहुंची, जहां ग्रामीण सुभाष चंद्रा गन्ने के सूखे पत्तों से अपना आशियाना तैयार करने में लगे थे.
जब संवाददाता ने उनसे गांव में हुए विकास को लेकर सवाल किए तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से कहा कि साहब विकास तो केवल चुनावी जुमला है. जब तक नेता चुनाव जीत नहीं जाते तब तक इसको रटते रहते हैं. फिर चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. उन्होंने बताया कि उनके गांव में आजतक किसी नेता ने खड़ंजे वाली सड़क तक नहीं बनवाई है. सड़क के नाम पर मिट्टी भर दी गई, लेकिन उसपर ईंट या गिट्टी डालना किसी ने मुनासिब नहीं समझा. गांव में बिजली तो आ गई, लेकिन जब घर ही नहीं है तो रोशनी कहां जलाएं.
सुभाष आगे कहते हैं कि मोदी सरकार के प्रधानमंत्री आवास योजना से घर मिलने की बड़ी आशा थी, लेकिन वह भी नहीं मिला. अब रहना और जीना तो है ही इसलिए हर बार की तरह इस बार भी वह गन्ने के सूखे पत्ते से सत्ता की बेशर्म हकीकत को बुनने में लग गए हैं. उन्हें मालूम है कि नेताओं के किए गए वादे बस चुनाव जीतने के लिए उपयोग में लाए गए शिगूफे हैं.