बाराबंकी: मिट्टी से कलाकृति और बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की स्थिति दयनीय हो गई है. महज दाल रोटी कमाने में ही एड़ी चोटी का जोर लग रहा है. कुम्हार यानी मिट्टी का राजा आज दाने-दाने को मोहताज है. वह बमुश्किल अपना परिवार चला पाता है. सरकार माटी से जुड़े इन लोगों को आखिर कब करेगी मदद यह एक बड़ा सवाल है. मिट्टी खरीदने से लेकर उसके बर्तन बनाने और साज-सज्जा में लगे खर्च और मेहनत के एवज में इन कुम्हारों को बस परिवार चलाने भर का ही फायदा मिलता है.
कुम्हार हैं परेशान
बाराबंकी में शनिवार को ईटीवी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों से मिलने पहुंचा. कुम्हारों ने बताया कि मृदा प्रदूषण के कारण अच्छी मिट्टी मिलना मुश्किल हो गई है. वहीं जब मिट्टी मिलती भी है तो उसके मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं.
नहीं मिल रही सही लागत
कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते हैं मगर उसको सुंदर और आकृति तक पहुंचाने में जितनी मेहनत और खर्च लगती है उसका ज्यादा लाभ उन्हें नहीं मिल पाता. बर्तनों के बेचने के बाद उन्हें बहुत कम मुनाफा मिलता है, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण बमुश्किल हो पाता है. ऐसे में वह केवल कार्य करने के लिए और अपना पेट पालने के लिए, अपने इस पैतृक कार्य को करने को मजबूर हो जाते हैं.