बाराबंकी: कृषि सुधार की दिशा संसद से पास कृषि बिल को किसान विरोधी बताते हुए किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है. आंदोलनकारी किसानों ने इन बिलों को काले कानून की संज्ञा दी है. आक्रोशित किसानों ने भाजपा सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया है. कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इन कानूनों के जरिये सरकार ने बड़ी साजिश की है. ताकि किसानों को भूमिहीन बना दिया जाए, जिससे वे आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाए. किसानों का कहना है कि इन कानूनों से किसान कम्पनियों के बंधुआ होकर रह जाएंगे.
बता दें कि कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाने की बात कहते हुए बीते 5 जून को केंद्र की भाजपा सरकार ने तीन अध्यादेश पास किये थे. पहला- द फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एसुरेन्स एंड फॉर्म सर्विसेज ऑर्डिनेंस 2020, दूसरा- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कामर्स (प्रोमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस 2020 और तीसरा- द एसेंशियल कोमोडिटीज अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2020. इसके बाद सरकार ने संसद के मौजूदा सत्र में इन तीनों अध्यादेशों को बिल के रूप में संसद में पेश कर दोनों सदनों से पास करा लिया है. सरकार के मुताबिक, इन कानूनों से इससे किसानों को लाभ पहुंचेगा और किसानों की आय दो गुनी होगी. लेकिन ये कानून किसानों के गले से नीचे नहीं उतर रहे हैं.
सरकार नए कानूनों से कृषि क्षेत्र में कंपनी राज लाना चाहती है: भाकियू
भारतीय किसान यूनियन ने संसद से पास कृषि बिल को किसान विरोधी बताते हुए आंदोलन शुरू कर दिया है. प्रदर्शन कारी किसानों का कहना है कि अगर सरकार वाकई किसानों की आय दोगुनी करने की मंशा रखती है, तो उसे इन कानूनों को वापस लेकर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बना दे.
किसानों का कहना है कि सरकार एक देश एक बाजार की बात करती है, लेकिन इन कानूनों से छोटे किसानों को लाभ नहीं मिल सकेगा. इस तरह इन कानूनों के जरिये सरकार किसानों को भूमिहीन बनाने में लगी है. भारतीय किसान यूनियन इन कानूनों को कृषि क्षेत्र में कंपनी राज के रूप में देख रही है. आक्रोशित किसानों का कहना है कि अगर सरकार किसानों की हितैषी है और वो वाकई किसानों की आय दोगुनी करने की मंशा रखती है, तो उसे इन कानूनों को वापस लेकर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बना दे.