बाराबंकी: जनपद में शिमला मिर्च की तकनीकी खेती सीखने अन्य जिलों से किसान आ रहे हैं. किसान कम लागत और औसत मेहनत में बेहतर उत्पादन के गुर सीख रहे हैं. बरेली से आए किसान लालाराम यहां मंचिंग और टपक सिंचाई के तरीके सीख रहे हैं. लालाराम बरेली में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने वाले पहले किसान हैं.
बाराबंकी बन रहा तकनीक युक्त खेती का केंद्र
इन दिनों बाराबंकी जिला तकनीकयुक्त खेती का केंद्र बनता जा रहा है. यहां पर अब किसान पारंपरागत खेती करने के साथ-साथ, तमाम प्रकार की सब्जियों और फलों की खेती भी कर रहे हैं. इसमें अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि वे बेहतर से बेहतर तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.
अन्य जिलों के किसान सीख रहे हैं किसानी
प्रदेश के अन्य जिलों के किसान पारंपरागत तरीके से खेती करते थे. वे भी यहां पर तकनीकी के गुर सीखने पहुंच रहे हैं. बाराबंकी के गांव बसबरौली के किसान सत्येंद्र वर्मा के पास बरेली के लालाराम यह देखने और सीखने के लिए पहुंचे कि कैसे मंचिंग और टपक सिंचाई के माध्यम से कम लागत और कम मेहनत में बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमाया जा सकता है.
लालाराम को बरेली में 1992 में शिमला मिर्च की हाइब्रिड वैरायटी लाने का श्रेय जाता है. उन्होंने आधा एकड़ से खेती शुरू की थी और 100 एकड़ तक शिमला मिर्च की खेती की.
2007- 2008 के वर्ष में भारत ब्रांड नाम से शिमला मिर्च की दिल्ली में सप्लाई करते थे, जिसका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए था.
टपक सिंचाई और मंचिंग से फायदा
- सिंचाई में 75% पानी की बचत होती है.
- पौधे स्वस्थ रहेंगे और ग्रोथ अच्छी होगी.
- पेस्टिसाइड फर्टिलाइजर और लेबर का खर्च कम होगा.
- केवल शुरुआत में एक बार खर्च आएगा.
- निराई गुड़ाई का खर्च नहीं होता है, जिससे पैसे की बचत होती है.
- महज 25% पानी का उपयोग करके पर्यावरण और जल स्रोत को बचाया जा सकता है.
- इसमें मंचिंग सीड डालने के कारण अल्ट्रावायलेट किरणें पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाती है.
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यहां से सीखकर वह अब मंचिंग और टपक सिंचाई पर जाना चाहते हैं . इसके पहले उन्होंने रायपुर में यह प्रक्रिया देखी थी, जब उन्हें पता चला कि बाराबंकी में इस प्रकार की खेती होती है तो वह सीखने और देखने आए हैं.
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