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वेतन न मिलने से परेशान सहकारी समितियों के कर्मचारी करेंगे बड़ा आंदोलन

बाराबंकी में वेतन न मिलने से परेशान सहकारी समितियों के कर्मचारियों ने बैठक कर आंदोलन की रणनीति बनाई. कर्मचारियों ने शासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि शासन की उपेक्षापूर्ण रवैये से सहकारी समितियां बदहाली का शिकार हैं और साल दर साल घाटे में जा रही हैं.

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सहकारी समतियों के कर्मचारी वेतन न मिलने से परेशान है.

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Published : Sep 21, 2020, 8:54 AM IST

बाराबंकी: जिले में पिछले कई वर्षों से वेतन न मिलने से परेशान सहकारी समितियों के कर्मचारियों ने अब आरपार की लड़ाई लड़ने का फैसला किया है. रविवार को जिले भर की समितियों के सचिव और कर्मचारियों ने बैठक कर आंदोलन की रणनीति तैयार की. कर्मचारियों ने सहकारी समितियों की बदहाली के पीछे सीधे तौर पर शासन को दोषी ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया कि शासन की उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते समितियां घाटे में जा रही हैं.


बता दें कि जिले में 124 साधन सहकारी समितियां हैं. इन पर करीब सौ कर्मचारी तैनात हैं. इनमें तमाम कर्मचारी ऐसे हैं जिनको कई कई महीने और तमाम तो ऐसे हैं जिनको कई वर्षों से वेतन नहीं मिला है. प्रदेश के संगठन संयुक्त मंत्री दिवाकर पांडे ने बताया कि कर्मचारियों ने संगठन के जरिये कई बार वेतन की मांग की, लेकिन सिर्फ वादा किया गया. पिछले 6 महीने से कोरोना काल में इन्होंने पूरी जिम्मेदारी से अपना काम किया, लेकिन वेतन नहीं दिया गया. अब इनके सामने भुखमरी की स्थिति बन गई है. शासन की उपेक्षा से नाराज कर्मचारियों ने रविवार को एक बैठक कर आंदोलन की रणनीति तैयार की. बैठक में कई बिंदुओं पर चर्चा की गई.

समितियों के बकाए का पीसीएफ समय पर नहीं करता भुगतान
संगठन के जिलाध्यक्ष सुदामा पांडे ने सहकारी समितियों की बदहाली के लिए सीधे तौर पर शासन को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया कि समितियां गेहूं और धान की खरीद करती हैं, लेकिन पीसीएफ उनके बकाया का भुगतान नहीं कर रहा है. पल्लेदारी, भाड़ा और कमीशन बकाया है. बार-बार कहने के बावजूद भी इनका बकाया नहीं दिया जा रहा.

उपेक्षा से साल दर साल घाटे में जा रही समितियां
कर्मचारियों का कहना है कि शासन द्वारा समितियों के साथ उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते ही ये घाटे पर होती जा रही हैं. उनका आरोप है कि किसानों को बिक्री के लिए आने वाली उर्वरक को पहले समितियों की बजाय निजी दुकानों पर दे दिया जाता है. तमाम समितियों को क्रय केंद्र तक नहीं बनाया गया. ऐसे में समितियों का घाटे में चले जाना लाजिमी है. कर्मचारियों की मांग है कि समितियों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए शासन को उपेक्षा पूर्ण रवैया छोड़ना होगा. साथ ही कर्मचारियों को समय से वेतन देना होगा.

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