बाराबंकी:किसानों के जैविक खेती (Organic Farming) की ओर बढ़ते रुझान और गोआश्रयों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए बाराबंकी के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (Chief Veterinary Officer) ने नई पहल की है. गोआश्रय स्थलों पर इकट्ठा हो रहे गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाई जाएगी.
गोआश्रय स्थलों पर इकट्ठे हो रहे गोबर का सदुपयोग करते हुए इसकी वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई जाएगी. इसके लिए अब हर गोआश्रय स्थल पर कम से कम 30 वर्मी कम्पोस्ट पिट बनाये जाएंगे, जिसमें यह तैयार की जाएगी. हर वर्ष करीब एक गोशाला से 750 क्विटंल वर्मी कम्पोस्ट तैयार होगी. इसके लिए सीवीओ ने कार्ययोजना तैयार कर ली है. यह काम मनरेगा के जरिये होगा. ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों को वर्मी कम्पोस्ट बनाने के तौर तरीकों और पूरे प्रोजेक्ट की ट्रेनिंग दी गई है.
जानकारी देते मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. जेएन पांडेय. यह भी पढ़ें: ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने बच्चों को दी खगोलीय विज्ञान की जानकारी
इस वर्मी कम्पोस्ट को बाजारों और किसानों को बेचा जाएगा. इससे मिलने वाली रकम से गोआश्रय स्थल को और बेहतर बनाने में खर्च किया जाएगा. बता दें कि केंचुओं के मल से तैयार खाद वर्मी कम्पोस्ट कहलाती है. वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद पोषक पदार्थ (earthworm compost nutrients) से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है. यह केंचुआ के जरिये गोबर को विघटित करके बनाई जाती है. गोआश्रय स्थलों पर 10×3×2 फिट साइज के सीमेंट के 30 पिट बनाये जाएंगे. एक पिट में आठ क्विटंल गोबर डाला जाएगा और एक पिट में 3 किलोग्राम केंचुएं डाले जाएंगे. पहली बार खाद तैयार होने में लगभग 6 से 8 दिन लगेंगे. इस प्रोसेस से एक साल में करीब 5 बार खाद तैयार की जाएगी. एक पिट में औसतन एक बार मे 5 क्विटंल खाद तैयार होगी. इस तरह सभी 30 पिट में साल भर में 750 क्विटंल खाद तैयार होगी.
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