उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

कई सरकारें आईं और गईं पर इन थारुओं की किसी ने नहीं सुनी

बलरामपुर में महाराणा प्रताप के वंशज कहे जाने वाली थारू जनजाति विकास की मुख्यधारा से कटी हुई है. सरकार और प्रशासन द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिससे थारू संस्कृति खतरे में है.

थारू दंपति

By

Published : May 10, 2019, 3:14 PM IST

बलरामपुर :17वीं लोकसभा के गठन के लिए देशभर के 543 सीटों पर मतदान जारी है. सभी राजनीतिक दलों द्वारा जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक चौसर बिछाए जा रहे हैं. इस खेल में किस ने बाजी मारी और किसका पलड़ा भारी रहा यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी वाली जनजाति अपनी किस्मत पिछले 70 सालों में वहीं की वहीं धरी रह गई. बलरामपुर जिले में तकरीबन डेढ़ लाख की संख्या में थारु जनजाति नेपाल की तलहटी वाले इलाके में निवास करती है. पहाड़ी क्षेत्र से सटी हुई यह जनजाति तकरीबन 500 सालों से यहीं आसपास के क्षेत्रों में निवास कर रही है.

थारू जनजाति लड़ रही अपने वजूद की लड़ाई

महाराणा प्रताप के वंशज हैं थारू

महाराणा प्रताप के वंशज कहे जाने वाले थारू समाज के लोग आज अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने और आधुनिक समाज से जुड़े रहने की एक अघोषित लड़ाई को लड़ रहे हैं. एक तरफ इनकी सांस्कृतिक विरासत धूमिल होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ युवाओं को रोजगार और मुख्यधारा से जोड़ पाना सरकारी तंत्र और राजनीतिक दल के लिए भी बड़ी चुनौती है.

मूलभूत समस्याओं की कमी से जूझ रहे थारू

थारू समाज पर पीएचडी करने वाले और इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के लखनऊ के उप प्रभारी डॉक्टर कीर्ति विक्रम सिंह बताते हैं कि थारू जनजाति तकरीबन 500 वर्षों पहले एक हमले के दौरान उत्तर प्रदेश के 8 जिलों में आकर बस गई थी. यह लोग खुद को मूलता महाराणा प्रताप का वंशज बताते हैं. इनकी तमाम समस्याएं हैं, जो अभी तक किसी सरकार द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है. यहां के बाशिंदों की सबसे बड़ी समस्या शिक्षा, स्वास्थ्य व मूलभूत सुविधाओं में बढ़ोतरी का न होना है.

मुख्यधारा से जोड़ने का किया जा रहा है प्रयास
वह तकरीबन 20 वर्षों से थारू जनजाति के लिए काम करने वाले रामकृपाल शुक्ला का मानना है कि थारू जनजाति की संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है. नए लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत से उस तरह का जुड़ाव नहीं रखते हैं. इसके लिए जो प्रयास पहले की सरकारों में किए गए वह पूरी तरह से फेल साबित हुए. वह कहते हैं कि पिछले 3 वर्षों से इमिलिया कोड के आगे पड़ने वाले बिशनपुर विश्राम में थारू जनजाति के लिए एक महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जहां पर अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ अपनी संस्कृति को बचाने के लिए विमर्श करते हैं. यह आयोजन हर साल होता है, जो कि इनकी संस्कृति को बचाने के लिए एक प्रमुख पहल है.

थारू संस्कृति को सहेजने के लिए बन रहा संग्रहालय

इमिलिया कोड में ही थारू जनजाति के संग्रहालय का भी निर्माण कराया जा रहा है. यह थारू जनजाति की संस्कृति को सहेजने और प्रदर्शित करने का काम करेगा. जिससे आने वाली पीढ़ी को यह पता हो सकेगा कि वह किस तरह के समाज से और कितनी समृद्धि परंपरा से नाता रखते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details