बलरामपुर: कोरोना वायरस के कारण हुए देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों की संख्या में घर से दूर काम कर रहे प्रवासी मजदूर दोबारा अपने गांव की तरफ लौटे. यहां पहुंचने के बाद इन मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इन्हें अब रोजगार कौन देगा? इनकी रोजी, रोटी और गृहस्थी कैसे चलेगी? जिले में भी तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिक आए हैं, जिनके लिए सरकार द्वारा तमाम व्यवस्थाएं की गई हैं.
मनरेगा से लोगों के घर हुए गुलजार
बलरामपुर जिले में बड़ी संख्या में आए प्रवासी मजदूरों को दिहाड़ी पर इतनी बड़ी संख्या में काम मिलना तो नामुमकिन सा था और दिहाड़ी मजदूरी में पैसे का भी घट जाना जायज था, लेकिन प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को और अधिक पुख्ता किया, जिससे बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिलना शुरू हुआ. इससे उनके घर कम ही पैसों से सही, लेकिन गुलजार हुए.
28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के बने जॉब कार्ड
बलरामपुर जिले में आए तकरीबन 80 हजार प्रवासी श्रमिकों में से अब तक 28 हजार से अधिक प्रवासी श्रमिकों के नए जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं. जबकि इससे पहले तकरीबन एक लाख जॉब कार्ड धारक काम कर रहे थे. प्रवासी श्रमिकों को रोजगार की गारंटी देने के लिए जिला प्रशासन और श्रम विभाग ने कमर कसी और जिले भर में अतिरिक्त तकरीबन48 हजार से ज्यादा मानव दिवस अधिक सृजित किए जाने लगे.
प्रवासी श्रमिकों को मिला रोजगार
मनरेगा में बाहर से आए श्रमिकों को रोजगार मिल ही रहा है. इसके साथ ही उनके परिवार में काम कर लेने योग्य लोगों को भी रोजगार दिया जा रहा है, जिससे उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या न खड़ी हो. मुख्य तौर पर दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब से आए इन प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत तालाब खुदाई, मार्ग पटाई, सड़क पटाई, कुआं खुदाई और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे घरों में काम दिया जा रहा है.
फैक्ट्रियां बंद होने पर वापस लौटे घर
पंजाब से लौटकर आई संगीता ग्रामसभा भीखपुर में चल रहे सड़क पटाई के काम में अपनी रोजी-रोटी कमा रही है. मनरेगा के तहत किए जा रहे इस काम में तकरीबन 150 श्रमिक लगे हुए हैं. संगीता लॉकडाउन का अनुभव बताते हुए कहती हैं, 'मैं लुधियाना में एक हैंगर बनाने वाली कंपनी में काम करती थी. वहां पर हमें तकरीबन 300 रुपये प्रतिदिन की दर से मजदूरी मिलती थी. लॉकडाउन हुआ तो फैक्ट्रियां बंद हो गईं, जिसके बाद हम लोग किसी तरह अपने घर वापस लौटे.'