मुरादाबाद:जिले में हिन्दू सनातन धर्म में किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसका दाह संस्कार किया जाता है, लेकिन एक जाति ऐसी भी है, जो हिन्दू रीति-रिवाज को मानते हैं, लेकिन मरने के बाद शव को दफनाते हैं. एक प्रधानपति ने आगे आकर नट समाज के साथ पंचायत कर उनकी मर्जी से शव को दफनाने की परंपरा को समाप्त कर दाह संस्कार कराने का फैसला लिया है.
नट समाज को दाह संस्कार का मिला अधिकार. नट समाज की पंचायत में लिया गया फैसला
जिले से करीब 15 किलोमीटर दूर छजलैट ब्लॉक के सलावा गांव में पेड़ के नीचे नट समाज की पंचायत लगी. इस पंचायत में प्रधानपति महेंद्र सिंह रंधावा की मौजूदगी में शव को जलाने का निर्णय लिया गया. नट समाज का कहना है कि ये जो सम्मान हम लोगों को मिला है, इसके बाद अगर दूसरे समाज के लोग आगे आकर हमें सम्मान देंगे तो यह फैसला मंजूर है. अब हमारी जाति में आगे से मरने वाले किसी भी व्यक्ति को दफन नहीं किया जाएगा. अब हम लोग भी हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार उसका दाह संस्कार करेंगे.
अब हिन्दू समाज की तरह करेंगे दाह संस्कार
सलावा गांव में नट समाज के करीब 500 से 600 लोग रहते हैं. नट समाज के इन लोगों का काम भीख मांग या नाचने गाने का है. मुरादाबाद के अलावा भी अन्य राज्यों में भी इन लोगों की आबादी है. भीख मांगकर अपना जीवन यापन करने वाले इन लोगों से छुआछूत की भावना रखी गयी. भले ही नट समाज के लोग का हिन्दू देवी-देवताओं का मंदिर हो और उनकी पूजा करते आ रहे हो, लेकिन ये लोग एक प्रथा से हमेशा से दूर रहे, जो कि मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार और दाह संस्कार का है.
कब्रिस्तान में अब करेंगे अंतिम संस्कार
भले ही इनका अलग से कब्रिस्तान है, लेकिन इस कब्रिस्तान में पक्की कब्र होने की वजह से अब किसी को भी दफन करने के लिए जमीन नहीं बची है. इनके पास दूसरी कोई जमीन भी नहीं है. जब इस बात की जानकारी गांव के प्रधानपति महेंद्र सिंह रंधावा को हुई. तब नट समाज के लोगों को समझाने का प्रयास किया कि वैसे तुम हिन्दू रीति रिवाज को अपनाते हो तो तुम लोग शव का अंतिम संस्कार और दाह संस्कार क्यों नहीं करते. इसके बाद समाज ने उनकी बात मान ली और दाह संस्कार करने का निर्णय लिया.
प्रधानपति महेंद्र सिंह रंधावा ने बताया कि यह लोग हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते है. उनको अपना भगवान मानते हैं, फिर मरने के बाद उसका दाह संस्कार करने की जगह उसको दफनाते क्यों है. यह बात इन लोगों के समझ में आ गयी और जैसे बाकी हिन्दू रीति रिवाज को यह लोग मानते हैं, उसी प्रकार दाह संस्कार के रिवाज को भी मानने की बात कह रहे है.