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बलरामपुर में बच्चे कीचड़ भरे रास्तों से स्कूल आने को मजबूर, गंदगी के बीच चल रही पढ़ाई

यूपी के बलरामपुर में एक प्राथमिक विद्यालय में 12 महिने पानी भरा रहता है. इसकी शिकायत संबंधित विभाग के आला अधिकारियों से भी की गई, लेकिन विद्यालय के हालात जस के तस बना हुआ है. प्राथमिक विद्यालय खंडहर में तब्दील हो चुका है, ऐसी हालात में भी बच्चे कीचड़ भरे रास्तों से विद्यालय आने के लिए मजबूर हैं.

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Published : Oct 12, 2019, 8:33 PM IST

विद्यालय में 12 महिने भरा रहता है पानी.

बलरामपुर: यह जिला नीति आयोग के तहत आने वाले अतिमहत्वाकांक्षी जिलों में शामिल है. जिले के सबसे पुरानी तहसील उतरौला के आर्यनगर मोहल्ले में नवीन प्राथमिक विद्यालय तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय उतरौला नगर स्थित है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस विद्यालय में 12 महिनें पानी भरा रहता है. कई बार प्रसाशन के आला अधिकारियों से भी शिकायत की गई, लेकिन हालात वैसे ही बने हुए हैं. प्राथमिक विद्यालय खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन ऐसे हालात में भी बच्चे कीचड़ भरे रास्तों से विद्यालय आने के लिए मजबूर हैं.

विद्यालय में 12 महिने भरा रहता है पानी.

विद्यालय जिले के उन सबसे पुराने विद्यालय में से एक
जिले के सबसे पुरानी तहसील उतरौला के आर्यनगर मोहल्ले में नवीन प्राथमिक विद्यालय तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय उतरौला नगर स्थित है. प्राथमिक विद्यालय को साल 2005 में स्थापित किया गया, जबकि जूनियर हाई स्कूल की स्थापना 1962 में की गई थी. यह विद्यालय जिले के उन सबसे पुराने विद्यालय में से एक है, जहां से पढ़कर निकलने वाले छात्र समाज के ऊंचे पायदान पर हैं, लेकिन आज यह विद्यालय अपने स्थिति का रोना रो रहा है.

खंडहर में तब्दील हुआ विद्यालय
यह विद्यालय पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है. यहां पर न तो कक्षाएं हैं और न ही मिड डे मील बनाने और खिलाने की कोई व्यवस्था. पंखा और ट्यूब लाइट तो लग गया है, लेकिन पोल से करंट अभी विद्यालय में नहीं पहुंच सका है. विद्यालय के खण्डहर नुमा कक्षाओं तक जाने के लिए नौनिहालों को अपनी ड्रेस और जूते गंदे करने पड़ते हैं. विद्यालय में हमेशा पानी भरा रहता है, जो नगर के नालियों से निकलने वाला गंदा पानी है. यहां पर न तो पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही छात्र छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं.

कीचड़ भरे रास्तों से विद्यालय आने में मजबूर बच्चे
नगर क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहां पर न तो आप तक कायाकल्प योजना लागू हो सकी और न ही यहां पर अवस्थापन सुविधाओं को ही बढ़ाया जा सका है. गांवों में ऑपरेशन कायाकल्प के जरिए, जहां विद्यालयों की सूरत को सुधारने का प्रयास किया गया. वहीं नगर क्षेत्र में पड़ने वाले इस विद्यालय में अब तक कोई काम नहीं करवाया जा सका है. बच्चे कीचड़ भरे रास्तों से आते जाते हैं. गंदे नाली का पानी इकट्ठा होने के कारण डेंगू और मलेरिया के मच्छर इस विद्यालय में फल फूल रहे हैं. गंदगी के कारण विद्यालय के कमरों में आए दिन सांप और बिच्छू निकलते रहते हैं.

अधिकारियों और प्रशासन की उदासीनता
अगर इस प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो महज अधिकारियों और प्रशासन की उदासीनता नजर आती है. नवीन प्राथमिक विद्यालय में 42 बच्चे पंजीकृत हैं, जहां पर औसत 60% बच्चे रोजाना उपस्थित रहते हैं. इन सभी को पढ़ाने के लिए महज 2 शिक्षक हैं, जबकि जूनियर हाईस्कूल नगर में 24 बच्चे पंजीकृत है और इनकी औसत अटेंडेंस 50 से 60% के करीब रहती है, लेकिन यहां पर भी इन बच्चों के देखरेख और इन्हें पढ़ाने के लिए केवल 2 अध्यापिका ही उपलब्ध हैं.

स्थानीय ने दी जानकारी
विद्यालय की स्थिति के बारे में इसी मोहल्ले में रहने वाले आमिर हुसैन कहते हैं कि इस विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं की बेहद कमी है. इस विद्यालय में साल के 12 महीने पानी भरा रहता है. यहां का बाउंड्री वॉल टूटा हुआ है. इसलिए हर शाम को यह विद्यालय जुआरियों और शराबियों का अड्डा बन जाया करता है. इस विद्यालय के जरिए जो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. उनको डेंगू और मलेरिया के मच्छरों के कारण तबीयत खराब हो सकती है. हम लोगों ने प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन प्रशासन का कोई आदमी सुनने को तैयार नहीं है. ईटीवी ने इस मुहिम को शुरू करके बहुत अच्छा काम किया है. हम सभी ईटीवी का धन्यवाद करते हैं.

बच्चों ने बयां किया अपना दु:ख
कक्षा 4 में पढ़ाई करने वाले दिव्यांशु गुप्ता बताते हैं कि उनके स्कूल में साल के 12 महीने पानी भरा रहता है. गंदे पानी के कारण काफी बदबू आती है. बिल्डिंग भी काफी जर्जर हो चुकी है. विद्यालय में न तो बिजली आती है और न ही पंखा चलता है. इस कारण मच्छरों और गर्मी के बीच हमें पढ़ाई करनी पड़ती है.

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शिक्षकों की कमी पर बोले बीएसए
बीएसए हरिहर प्रसाद ने शिक्षकों की कमी पर बात करते हुए कहा कि बलरामपुर जिले में तकरीबन 3800 टीचरों की कमी है. अगर हम मानकों के अनुसार बच्चों को पढ़ाना शुरू करें, तो तमाम तरह की दिक्कतें आ जाएंगी. फिर भी हम शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों के जरिए यह कोशिश करते हैं कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं मुहैया करवाई जा सकें और उनके पढ़ाई में किसी तरह की कोई दिक्कत न आए.

बीएसए हरिहर प्रसाद ने इस मामले पर बात करते हुए कहा कि कायाकल्प योजना पिछले वर्ष लागू की गई थी, जिसके अंतर्गत तकरीबन 1400 विद्यालयों का कायाकल्प किया गया है. बाकी बचे विद्यालय भी योजना में हैं, जिनका तेजी से विकास किया जा रहा है.

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