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अन्नदाताओं के मसीहा थे चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह का आज जन्मदिन है. उनके जन्मदिन पर पूरे देश में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. उन्होंने प्रमुख रूप से किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे, जिनकी महत्ता आज भी बरकरार है.

चौधरी चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह

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Published : Dec 23, 2020, 11:56 AM IST

बागपत: चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ के नूरपुर गांव में हुआ था. छह माह की उम्र में पिता चौधरी मीर सिंह और माता नेत्र कौर के साथ वह मेरठ के भूपगढ़ी गांव आ गए थे. जानीखुर्द की पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा और 1926 में मेरठ कॉलेज से कानून की पढ़ाई कर उन्होंने गाजियाबाद में वकालत शुरू की. 1937 में छपरौली से प्रांतीय धारा सभा में चुने गए आजादी के आंदोलन में उन्होंने भाग लिया. तीन अप्रैल 1967 को मुख्यमंत्री, 1977 में सांसद बनने के बाद गृहमंत्री, 24 जनवरी 1979 को उप प्रधानमंत्री और 28 जुलाई 1979 को वह प्रधानमंत्री बने. इस महान शख्सियत का 29 मई 1987 को निधन हो गया.

किसानों को दिलाई आजादी

चौधरी साहब ने सहकारी खेती का विरोध, कृषि कर्ज माफी, जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार अधिनियम, चकबंदी अधिनियम लागू करने, मृदा परीक्षण, कृषि को आयकर से बाहर रखने, नहर पटरी पर चलने पर जुर्माना लगाने का ब्रिटिश कानून खत्म करने, वर्ष 1961 में वायरलेस युक्त पुलिस गश्त, किसान को जोतबही दिलाने, कृषि उपज की अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक हटाने और कपड़ा मिलों को 20 प्रतिशत कपड़ा गरीबों के लिए बनवाने जैसे काम किए.

ऐसे निपटाया था पटवारियों का आंदोलन

'चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत' पुस्तक में उल्लेख है कि 1952 में जमींदारी उन्मूलन जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने के बाद जमींदारों और सरकार में उनके पक्षधरों के इशारे पर पटवारियों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन शुरू किया. पटवारियों ने दबाव बनाने के लिए त्याग पत्र तक भेजे. राजस्व मंत्री की हैसियत से चौधरी साहब ने पटवारियों को इस्तीफों पर विचार करने को समय दिया, लेकिन बाद में 27 हजार पटवारियों के इस्तीफे मंजूर कर 13 हजार लेखपाल भर्ती किए. इनमें 18 फीसदी हिस्सेदारी अनुसूचित जाति को दी. शिक्षण संस्थाओं से जातियों के नाम हटवा दिए.

हिदी के थे प्रबल समर्थक

09 दिसबंर 1948 को मेरठ में हिदी साहित्य सम्मेलन के 36वें अधिवेशन में चौधरी साहब ने कहा कि हिदी व अन्य प्रांतीय भाषाओं की जननी संस्कृत है. जो लोग हिदी के राष्ट्र भाषा बनाने में सांप्रदायिकता देखते हैं, वह स्वयं सांप्रदायिकता का चश्मा पहने हैं.

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