अयोध्या : अयोध्या ले लगभग चार किलोमीटर की दूर दर्शन नगर में चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर स्थित सूर्य कुंड और सूर्य मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण अयोध्या के सूर्यवंशी शासकों ने किया था. इस कुंड के साथ ही भगवान सूर्य का एक मंदिर भी है जो सूर्यवंशियों के लिए सूर्य देव की आस्था का प्रतीक माना जाता है. सरकार ने 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले इस पौराणिक कुंड और मंदिर का जीर्णोद्धार 14 करोड़ की लागत से कराया है. वेदों में भगवान सूर्य को जड़-चेचन जगत की आत्मा कहा गया है. सूर्यवंशी राजा घोष का कुष्ठरोग इस कुंड में स्नान करने से ठीक हुआ था. मान्यता है कि इस सूर्य कुंड में स्नान और सूर्य मंदिर में दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
प्राचीन मंदिर और कुंड की अद्भुत कथाएं :इस प्राचीन मंदिर और कुंड के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि अयोध्या के शाकद्वीपीय ब्राह्मण राजा दर्शन सिंह 19वीं शताब्दी ने कुंड और मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. उनके नाम पर ही कस्बे का नाम दर्शन नगर रखा गया था. दर्शन सिंह ब्राह्मण (मिश्र) थे, किंतु अंग्रेजों के समय राजाओं को सिंह की उपाधि दी जाने लगी थी. इसी कारण उन्होंने भी अपने नाम के आगे सिंह लिखना आरंभ कर दिया था. वर्तमान में राजा दर्शन सिंह, जिनका निधन 1844 में हुआ था, के वंशज विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और शैलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र अयोध्या राज निवास में रहते हैं. इन्हें राजा अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है. आज भी अयोध्या के राम पथ पर श्रीराम मंदिर से कुछ ही दूरी पर इस राज परिवार का भव्य महल देखा जा सकता है. शाकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्यदेव को अपना आराध्य मानते हैं. इसीलिए राजा दर्शन सिंह ने अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिए सूर्य मंदिर और कुंड का निर्माण कराया था.
ऐसे पड़ा तीर्थ का नाम घोषार्क :एक कथा यह भी है कि सूर्य मंदिर और कुंड के जीर्णोद्धार से पूर्व इस स्थान को ‘घोषार्क तीर्थ’ के नाम से भी जाना जाता था. इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में भी इसका जिक्र किया है. साथ ही इस तीर्थ का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है. जिसमें वर्णन है कि इस तीर्थ में स्नान आदि से सभी पापों का नाश हो जाता है. कथा के अनुसार राजा घोष एक बार इस क्षेत्र में निकले तो देखा कि कुंड में कुछ ऋषि स्नान कर रहे हैं. राजा की इच्छा भी कुंड में स्नान की हुई. बताते हैं कि स्नान के बाद राजा का शरीर दिव्य हो गया. बाद में ऋषियों ने उन्हें तीर्थ के महात्म्य के विषय में बताया. जिसके बाद राजा ने वहां सूर्यदेव की आराधना प्रारंभ की. जिसके बाद सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिए. जिसके बाद राजा ने सूर्य मंदिर का निर्माण कराया. उसी समय से इस तीर्थ का नाम घोषार्क पड़ गया, जिसे बाद में सूर्य कुंड और सूर्य मंदिर के नाम से पहचाना जाने लगा.