अयोध्या:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम नगरी में भव्य राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रख रहे होंगे तो इस शुभ बेला को लाने में अहम भूमिका निभाने वाली छह महान विभूतियों को भी देश जरूर याद कर रहा होगा. असंख्य लोग जब 5 अगस्त को भव्य राम मंदिर निर्माण की आधारशिला के साक्षी बनेंगे, इस दौरान छह विभूतियां स्वर्ग से इस महान दृश्य को जरूर देख रही होंगी. इस अद्भुत दृश्य के दर्शन कर स्वयं पर गर्व भी महसूस कर रहे होंगे.
देश की छह महान विभूतियों के अथक प्रयासों से ही यह शुभ घड़ी आई है कि अयोध्या में तिरपाल से रामलला बाहर आएंगे और भव्य राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त होगा. मंदिर निर्माण आंदोलन के सूत्रधार ये छह महान विभूतियां महंत रामचंद्र परमहंस, महंत अवैद्यनाथ, विश्व हिंदू परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. अशोक सिंघल, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कारसेवक स्व. कोठारी बंधु हैं. इन महान विभूतियों का राम मंदिर निर्माण आंदोलन में अहम योगदान रहा है.
अटल बिहारी वाजपेयी
मंदिर निर्माण आंदोलन को धार देने वाले आज भले ही अयोध्या के पवित्र धरातल पर न आ पाएं हों, भव्य राम मंदिर के निर्माण के सपने को जीते जी साकार होते हुए न देख पाए हों, लेकिन स्वर्ग से वे यह मनोरम दृश्य जरूर देखेंगे. राम मंदिर निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वालों में प्रमुख हैं पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी. अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी सजग थे. वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, तो अटल जी पार्टी के अध्यक्ष बने. उन्होंने राम मंदिर को पार्टी का मुद्दा बना लिया था. राम मंदिर आंदोलन में अटल जी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
इस आंदोलन की अग्रणी पंक्ति में अटल जी शामिल रहे. उन्होंने आंदोलन को नेतृत्व दिया. राम मंदिर के लिए जब भी धर्म संसद आयोजित होती थी अटल जी हमेशा पहली पंक्ति में ही नजर आते थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन शुरू किया तो भाजपा ने अटल जी के कार्यकाल में भगवान राम के मंदिर मुद्दे के जरिए ही हिंदुओं को एक सूत्र में पिरोने का काम किया. छह दिसंबर 1992 को जब अयोध्या का कार्यक्रम प्रस्तावित था तो इसकी पूर्व संध्या पर अटल जी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मौजूद थे. वे अपने अभिन्न मित्र लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या की तरफ कूच करना चाहते थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली जाकर मोर्चा संभालने का निर्देश दे दिया. अगस्त 2018 में भगवान राम के अनन्य भक्त अटल बिहारी वाजपेयी दुनिया को अलविदा कह गए.
अशोक सिंघल
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अशोक सिंघल को राम मंदिर निर्माण आंदोलन का चीफ आर्किटेक्ट कहा जाता है. इनकी वजह से लाखों की तादाद में कारसेवक कार सेवा करने के लिए पवित्र राम नगरी पहुंचे थे. राम मंदिर के शिलान्यास से लेकर कारसेवा और बाबरी विध्वंस में अशोक सिंघल की यादगार भूमिका रही है. 1989 में राम नगरी में शिलान्यास के बाद सिंघल का बयान था कि 'यह मात्र एक मंदिर का नहीं, हिंदू राष्ट्र का शिलान्यास है'. कई साल तक अशोक सिंघल आरएसएस से जुड़े रहे और वर्ष 1981 में उन्हें देश में हिंदुत्व की भावना को फिर से जाग्रत करने के लिए विश्व हिंदू परिषद के साथ जोड़ दिया गया. 1984 में आयोजित धर्मसंसद के आयोजन में अशोक सिंघल की भूमिका लोगों के जेहन से कभी भुलाई नहीं जा सकेगी. इसी धर्म संसद में साधु-संतों की बैठक के बाद राम मंदिर निर्माण की नींव रखने का फैसला हुआ था. आज जब राम मंदिर निर्माण का सपना साकार हो रहा है तो यह राम भक्त इस धरा पर उपस्थित नहीं है, लेकिन राम भक्त यह जानते हैं कि सिंघल की इस मंदिर निर्माण में क्या भूमिका रही है.
महंत रामचंद्र परमहंस
राम मंदिर निर्माण आंदोलन का जिक्र आएगा तो इस आंदोलन में भूमिका निभाने वाले महंत रामचंद्र दास परमहंस का नाम जरूर लिया जाएगा. उन्होंने जमीन पर तो भगवान राम के लिए संघर्ष किया ही न्यायालय में भी अपने कदम कभी पीछे नहीं खींचे. इतना ही नहीं महंत परमहंस की भगवान राम में किस कदर आस्था थी, उसका अंदाजा भी इस बात से लगता है कि 1949 में विवादित बाबरी मस्जिद में मूर्ति स्थापित करने वालों में रामचंद्र परमहंस ही प्रमुख थे. 1950 में रामलला की पूजा के लिए न्यायालय में याचिका लगाई और जिला न्यायालय ने इसकी अनुमति दे दी थी. परमहंस राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष थे, जिन्होंने आंदोलन में महत्वपूर्ण रोल निभाया था. वे 1934 में राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े. बाबरी मस्जिद निर्माण समिति की पैरवी करने वाले मोहम्मद हाशिम अंसारी के साथ रामचंद्रदास परमहंस के सबसे अच्छे संबंध रहे हैं. दोनों लोग एक साथ मुकदमे की पैरवी करने जाया करते थे. राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने के समय रामकृष्ण परमहंस भी इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके राम मंदिर निर्माण के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.
महंत अवैद्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मठ का तीन पीढ़ियों से राम मंदिर आंदोलन से नाता रहा है. गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजयनाथ की मृत्यु के बाद उनके शिष्य अवैद्यनाथ ने मठ की गद्दी संभाल ली. साल 1984 में उन्होंने सभी पंथ और सम्प्रदायों के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति गठित की. उन्हीं के नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ और 1984 में सीतामढ़ी से अयोध्या के लिए धर्मयात्रा निकाली गई. साल 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज जस्टिस कृष्ण मोहन पांडेय ने राम मंदिर का ताला खोलने का आदेश दिया था तो महंत अवैद्यनाथ मौके पर मौजूद रहे. 9 नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित हुआ, जिसकी अध्यक्षता महंत अवैद्यनाथ ने ही की थी.
हरिद्वार के संत सम्मेलन में उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण की तारीख घोषित की और 26 अक्टूबर को वह इसके लिए निकल पड़े थे. मंदिर निर्माण के लिए अवैद्यनाथ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 23 जुलाई 1992 में मंदिर निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला. 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का फैसला लिया गया था. महंत अवैद्यनाथ कारसेवा का नेतृत्व करने वालों में सबसे पहले थे. उनके समय में गोरखनाथ मंदिर को राम मंदिर आंदोलन के मुख्य केंद्र के तौर पर जाना जाता था. आज राम मंदिर के निर्माण का रास्ता प्रशस्त हो गया है, लेकिन राम मंदिर के लिए जी जान लगा देने वाले महंत अवैद्यनाथ इस दुनिया में नहीं हैं. हालांकि उनकी मेहनत रंग लाई है. उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ मंदिर निर्माण में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं.
राम कोठारी, शरद कोठारी
राम मंदिर निर्माण के शुभारंभ पर अगर गर्व से किसी का नाम लिया जाएगा तो उन नामों में कारसेवक कोठारी बंधु भी जरूर शामिल होंगे. यह कोठारी बंधु (राम कुमार कोठारी, शरद कोठारी) ही थे, जिन्होंने अयोध्या में बाबरी विध्वंस में अहम भूमिका निभाई थी. दोनों भाइयों ने बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा हरा दिया था. वैसे तो उनका ताल्लुक पश्चिम बंगाल से था, लेकिन राम की अगाध भक्ति उन्हें उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक कार सेवा के लिए खींच लाई थी. उन्होंने सभी कारसेवकों में सबसे हटकर भगवान राम के मंदिर निर्माण में अहम रोल अदा किया. हालांकि कोठारी बंधु भी मंदिर निर्माण का वह स्वर्णिम पल देखने के लिए आज संसार में नहीं हैं, क्योंकि आंदोलन के दौरान गोली लगने से दोनों भाइयों की मृत्यु हो गई थी. राम मंदिर निर्माण से जुड़े राम भक्त इन कोठारी बंधुओं के योगदान को शायद ही कभी भुला पाएं.