अलीगढ़:अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर मनोविज्ञान विभाग द्वारा आत्महत्या से बचाव के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस मौके पर साइकोलॉजिकल सोसायटी से जुड़े छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या और उससे बचाव पर एक नुक्कड़ नाटक की शानदार प्रस्तुति दी. छात्रों ने इसकी स्क्रिप्ट खुद तैयार की और आर्ट फैकल्टी के मैदान पर जागरूकता संबंधी स्टॉल भी लगाया.
समस्या का अंत नहीं आत्महत्या. 10 अक्टूबर को यूनाइटेड नेंशन ने 'वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे' घोषित कर रखा है और इसके तहत इस बार की थीम सुसाइड प्रीवेंशन है. नुक्कड़ नाटक के जरिए लोगों को संदेश दिया गया कि जब लोग डिप्रेशन होता हैं और मदद के लिए कोई नहीं होता तो लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं. अगर आत्महत्या की सोचने के पांच मिनट के अंदर कोई समस्या को सुन लें और सहानुभूति जता दें तो सुसाइड को टाला जा सकता है. इस दौरान बातचीत कर समस्या को हल करने के प्रयास किया जाएं तो जिंदगियां बच सकती हैं.
समस्या का अंत नहीं आत्महत्या
मनोविज्ञान विभाग की चेयरमैन रूमाना सिद्दीकी ने बताया कि हमारे समाज में आत्महत्या रोक केंद्र बनने चाहिए. इसके अलावा मोबाइल हेल्पलाइन भी स्थापित करनी चाहिए. बाहर के देशों में यह काम हो रहा है. भारत में भी तीन-चार एनजीओ काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि जब हताशा सामने आती है उस समय पांच मिनट भी किसी से बात कर लें तो आत्महत्या को टाला जा सकता है.
आत्महत्या के पीछे होते हैं 'मेंटल डिसऑर्डर'
मनोविज्ञान विभाग की चेयरमैन ने बताया कि सिर्फ हमें ध्यान भटकाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि आत्महत्या के पीछे मेंटल डिसऑर्डर होते हैं. लोग मानसिक रूप से परेशान होते हैं. दहेज, पढ़ाई और रिजल्ट को लेकर लोग टेंशन में आते हैं और फिर आत्महत्या करते हैं. जब लोग उम्मीदें ज्यादा करते हैं और उस पर खरे नहीं उतरते हैं तो हताश होते हैं. फिर आत्महत्या करते हैं.
सहयोग से बचाई जा सकती है जिंदगी
उन्होंने बताया कि डिप्रेशन के कारण ही आत्महत्या होती है, लेकिन इसे मैनेज करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, जिसके लिए हमें जान देनी पड़े. सहयोग से ही जिंदगी को बचाई जा सकती है.
फैमिली और फ्रेंड सर्कल रोक सकती हैं घटनाएं
नुक्कड़ नाटक में मौत का रोल अदा करने वाले रवि इल इस्लाम ने बताया कि ज्यादातर युवा सुसाइड करने की कोशिश करते हैं. हमारे आसपास के लोग जो सुसाइड अटेम्प्ट करते हैं या अवसाद में रहते हैं. इस नुक्कड़ नाटक के जरिए संदेश देना चाहते हैं कि जिंदगी सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती है और भी बहुत कुछ बाकी है. सुसाइड जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है. हमारी फैमिली और फ्रेंड सर्कल आत्महत्या जैसी घटनाओं पर रोक लगा सकते हैं.
तांत्रिक-ओझा के बजाय डॉक्टर के पास जाएं
वहीं छात्रा स्नोबी ने बताया कि डिप्रेशन का लेबल अगर हाई होता है तो उसे डॉक्टर के पास काउंसलिंग या थैरेपी के लिए जाना चाहिए. स्नौबी ने बताया कि मानसिक बीमारी होने पर हमारे समाज में लोग ओझा या तांत्रिक के पास जाते हैं, लेकिन डिप्रेसन की बीमारी होने पर डॉक्टर के पास जाना चाहिए.