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वन महाराज कॉलेज विवाद: ट्रस्ट की जगह पर कब्जा करने में डिप्टी रजिस्ट्रार वीके सिंह पर लगे गंभीर आरोप

वन महाराज कॉलेज विवाद में ट्रस्ट की जगह पर कब्जा करने में आगरा चिटफंड सोसाइटी के डिप्टी रजिस्ट्रार वीके सिंह पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं.

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Published : Oct 8, 2022, 11:08 PM IST

वन महाराज कॉलेज विवाद
वन महाराज कॉलेज विवाद

आगरा:वृंदावन के वन महाराज कॉलेज विवाद में आगरा के चीट फंड सोसायटी के डिप्टी रजिस्ट्रार वी के सिंह पर गंभीर आरोप लगे हैं. कॉलेज प्रवक्ता ने बताया कि विद्यालय की 28 एकड़ जमीन, जोकि वर्तमान अध्यक्ष गोपाचंद महाराज की है. उस पर नामदेव शर्मा नाम के एक मामूली व्यक्ति ने धोखे से साइन करवा कर कॉलेज की जगह पर कब्जा कर लिया है.

वह व्यक्ति शिक्षा को धंधा बनाकर व्यापार करना चाहता है. इसका विरोध हमारे अध्यक्ष द्वारा लगातार किया जा रहा है. इस वजह से हमारे साधु-संतों पर हमले भी कराए गए है. लेकिन, सीएम योगी से शिकायत करने पर सभी साधु संत को सुरक्षा दी गई है. इस पूरे मामले में आगरा के चिट फंड सोसाइटी के डिप्टी रजिस्ट्रार वीके सिंह भी जुड़े हुए हैं. जिनके साइन करने की वजह से ही वन महाराज कॉलेज जमीन का फैसला नामदेव शर्मा के पक्ष में कर दिया गया है. यह सभी लोग आपस में मिले हुए हैं.

वन महाराज कॉलेज विवाद

वृंदावन के वन महाराज कॉलेज के प्रवक्ता राजेंद्र मिश्रा ने बताया कि कॉलेज की 28 एकड़ जमीन है. सन् 1947 में इस कॉलेज की शुरुआत हुई थी. नामदेव शर्मा नाम के व्यक्ति हमारे कॉलेज में एक मामूली केयर टेकर के रूप में आया, जिसने अध्यक्ष आचार्य श्रीमद गोपाचंद महाराज जी का विश्वास जीत उनसे कागजों पर साइन करा लिया. इसके बाद ट्रस्ट बनाकर उसमें अपने पूरे परिवार के लोगों को शामिल कर लिया. इसके बाद अध्यक्ष आचार्य जी को ही उस ट्रस्ट में अध्यक्ष पद से हटवा दिया. इसके बाद नामदेव ने अपने परिवार वालों के साथ मिलकर वन महाराज कॉलेज इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल पर कब्जा कर लिया.

प्रवक्ता ने आगे कहा कि आचार्य श्रीमद गोपा नंदन महाराज जी के पूर्वजों ने कॉलेज इसलिए शुरू किया था कि वह शिक्षा को मुफ्त में दे सकें और लोगों का उद्धार कर सके. इस शिक्षा के मंदिर से लोगों का भला हो सके, लेकिन नामदेव शर्मा के साथ मिलकर आगरा के चिटफंड सोसाइटी के डिप्टी रजिस्ट्रार वीके सिंह ने भी इस पूरे मामले में बराबर का साथ दिया है. पहले तो इन्होंने आचार्य श्रीमद गोपा चंद महाराज जी के पक्ष में फैसला दिया. लेकिन, कुछ वक्त बाद ही अपने ही फैसले को रद्द कर दिया और नामदेव शर्मा को ट्रस्ट का अध्यक्ष भी घोषित कर दिया. उसके पक्ष में अपना फैसला दिया. इससे साफ जाहिर है कि दोनों ही मिलकर कॉलेज, आश्रम पर कब्जा कर शिक्षा को बेचना चाहते हैं और पैसा कमाना चाहते हैं.

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