आगरा: जिले के एक कार्यक्रम में लोग तालियों की जगह कांव-कांव कर रहे थे, संबोधन में वाह-वाह के स्थान पर गधे के रेंकने की आवाज गूंज रही थी. जी हां हम बात कर रहे है संस्कार भारती द्वारा ताजनगरी में आयोजित किये गए महामूर्ख सम्मेलन की. वैसे तो किसी को मूर्ख कहना अपने लिए आफत को दावत देना है, लेकिन इस सम्मेलन में लोग अपने आप को महामूर्ख कहलवाने के लिए लालायित रहते हैं. यहां दी जाने वाली तमाम उपाधियों को पाने के लिए मूर्खतापूर्ण काम करते नजर आते हैं.
क्या थी मांग
1. आगरा को मूर्खों का ऐतिहासिक नगर घोषित किया जाए.
2. आगरा में मूर्खानंद विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए.
3. आगरा के पागलखाने पर मूर्खों का कार्यकाल खोलने की अनुमति दी जाए.
4. मूर्खों को सभी सरकारी सुविधाएं प्रदान की जाए.
5. काक श्री को मूर्खों का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए और काक महाशय को प्रतिदिन आदर से बुलाकर भोजन करवाया जाए.
6. गदर्भ राज के काम करने का समय निश्चित किया जाए जो मालिक अन्याय करें उस पर धारा 307 लागू की जाए.
7. गदर्भ राज को चिकित्सा, शिक्षा और आवास की निशुल्क सुविधा दी जाए तथा उनके भोजन के मैन्यू की जांच प्रतिदिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा की जाए.
मूर्ख कलाविदों को मिलीं उपाधियां
इस महामूर्ख सम्मेलन में आए हुए रंग कर्मियों को तरह-तरह की उपाधियां भी दी गई. जिसमें संगीतज्ञ डॉ सदानंद ब्रह्मभट्ट को मूर्खाधिराज, रंगकर्मी अनिल जैन को मूर्ख शिरोमणि, लोक गायक नीरज शर्मा को काक शिरोमणि और कवि भूषण रागी को मूर्ख मणिरत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया. सभी अतिथियों एवं उपाधि धारकों को प्रशस्ति पत्र, बाजू हिना कुर्ता, गदर्भ कलगी युक्त पगड़ी, सब्जियों की माला और गोभी का फूल देकर सम्मानित किया गया.