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यूपी में मनरेगा से मजदूरों का मोह भंग, 65 प्रतिशत जॉब कार्ड वालों ने नहीं मांगा काम - मनरेगा से मजदूरों का मोह भंग

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा (MNREGA) में रजिस्टर्ड श्रमिकों को सरकार 100 दिन काम की गारंटी देती है. मगर वित्तीय वर्ष 2022-23 में यूपी में रजिस्टर्ड मनरेगा के लाखों मजदूरों ने काम ही नहीं मांगा, जानिए इसकी वजह क्या रही.

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Published : Mar 23, 2023, 1:31 PM IST

मनरेगा के एडिशनल प्रोग्राम ऑफिसर मनीष कुमार प्रभाकर ने बताया कि आगरा में भी 60 फीसदी मनरेगा मजदूरों ने काम नहीं मांगा.

आगरा : कोरोना काल में गांव-गांव रोजगार का सहारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा बना था. जब कोरोना संक्रमण की पहली बार लॉकडाउन लगा तो शहरों से लाखों की संख्या में मजदूर परिवार के साथ अपने-अपने गांव लौटे थे. ऐसे में बेरोजगार मजदूरों के घर में चूल्हा मनरेगा के कारण ही जला था. कोरोना काल में योगी सरकार के अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर मनरेगा के जॉब कार्ड बनाए थे. जिससे हर बेरोजगार हाथ को काम मिला था. अब उसी मनरेगा से मजदूरों का मोह भंग हो गया है.

इसके चौंकाने वाले आंकड़ें सामने आए हैं. चालू वित्तीय वर्ष के दौरान यूपी में 65 फीसदी से अधिक मनरेगा जॉब कार्ड धारक ने रोजगार ही नहीं मांगा. अब सरकार एक भी दिन का काम नहीं मांगने वाले जाॅब कार्ड धारकों का सत्यापन कर रही है. सत्यापन के बाद उनके कार्ड 31 मार्च 2023 तक टैग किए जाएंगे, जिससे काम नहीं मांगने वालों का मास्टर रोल जारी नहीं होेगा.

प्रयागराज और गोरखपुर जिलों में सबसे अधिक मनरेगा मजदूर निष्क्रिय दिखे. कोरोना के बाद हालात सामान्य होने के बाद इन जिलों में पलायन फिर शुरू हुआ है.
यूपी के 75 जिलों में मनरेगा में अभी 22259394 परिवार (जॉब कार्ड) पंजीकृत हैं. इन परिवारों के 30541505 श्रमिक पंजीकृत हैं. वित्तीय वर्ष 2022-23 में 20 मार्च 2023 तक यूपी में मनरेगा में रजिस्टर्ड 7661546 परिवारों के 9295751 श्रमिकों ने काम मांगा है. यानी मनरेगा में पंजीकृत 14563848 परिवार (जॉब कार्ड) के 21245754 श्रमिकों ने एक दिन का काम नहीं मांगा है. मनरेगा को लेकर अब यूपी के अलग अलग जिलों के आंकड़े चौंकने वाले हैं. कोरोना के बाद ज्यादातर मजदूर शहर लौटे : आगरा में मनरेगा के एडिशनल प्रोग्राम ऑफिसर मनीष कुमार प्रभाकर ने बताया कि, कोरोना काल में आगरा में करीब 70 हजार परिवार अपने गांव लौटे थे. जो लोग अपने गांव आए, हालात सामान्य होने पर ज्यादातर लोग शहरों की ओर लौट चुके हैं. मनरेगा में पारश्रमिक महज 213 रुपये है. जबकि उन्हें शहरों में औसतन 400 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मेहनताना मिल जाता है. यह वजह है कि मनरेगा में मजदूर काम नहीं कर रहे हैं. मनरेगा में जिन मजदूरों के जॉब कार्ड बने थे, उन्होंने काम नहीं मांगा है. अब काम नहीं मांगने वाले जॉब कार्ड का सत्यापन किया जा रहा है. ऐसे जॉब कार्ड होगा टैग : मनरेगा मजदूर जब एक वित्तीय वर्ष में एक भी दिन काम नहीं करते हैं तो उनके जॉब कार्ड को ऑनलाइन टैग किया जाता है. टैग होने के बाद जॉब कार्ड पर मस्टर रोल जारी नहीं हो सकेगा. यदि मजदूर को दोबारा काम मांगने की जरूरत पड़ी तो विकास खंड में सत्यापन के बाद जॉब कार्ड से टैग हटाया जाएगा.एक परिवार का एक जाॅब कार्ड : मनरेगा के एडिशनल प्रोग्राम ऑफिसर मनीष कुमार प्रभाकर ने बताया कि, एक परिवार का एक जाॅब कार्ड होता है. जिसमें पूरे परिवार के मजदूर पंजीकृत किए जाते हैं. आगरा की बात करें तो 228652 परिवार यानी जाॅब कार्ड हैं. जिनमें 317290 मजदूर पंजीकृत हैं. जबकि, इस वित्तीय वर्ष में अभी तक 90405 जाॅब कार्ड के 117268 मजदूर ने काम मांगा है. अगर, आंकड़ों की बात करें तो आगरा में 60 प्रतिशत जाॅब कार्ड वालों ने काम नहीं मांगा है. पढ़ें : FM Nirmala Sitharaman: 2023-24 के बजट में मनरेगा के प्रावधान को कम नहीं किया गया

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