आगरा: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले. वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. जी हां हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगतसिंह और उनके साथियों की. शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को लाहौर में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटकाया था. भारत मां के तीनों वीर सपूत हंसते-हंसते सूली पर चढ़े और देश में आजादी की आग को शोला बन गए. शहीद-ए-आजम भगत सिंह और बटकेश्वरदत्त ने सन् 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम धमाका करके अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था. भगत सिंह और उनके साथियों ने आगरा में किराए पर रहकर बम बनाने का काम किया था. जिस कोठी में भगत सिंह और उनके साथी छात्र बनकर रहे थे, वह नूरी दरवाजा स्थित कोठी नंबर 1784 है, जो खंडहर हो गई है.
सांडर्स की हत्या कर आगरा में रहे
शहीद-ए-आजम भगत सिंह लाहौर में अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स की गोली मारकर हत्या करने के बाद आगरा आए थे. सन 1928 में भगत सिंह और उनके साथी आगरा आए. यहां पर उन्होंने लाला छन्नोमल के नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को अपने कई दोस्तों के साथ किराए पर लिया था. छन्नोमल ने भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के पकड़े जाने पर गवाही दी थी. जिसमें उन्होंने स्वीकारा था कि, ढाई रुपये एडवांस देकर पांच रुपए महीने के किराए पर भगत सिंह ने मकान लिया था.
आगरा में इसलिए आए भगत सिंह
आगरा और उसके आसपास क्रांतिकारी गतिविधिया बहुत कम थीं. इस वजह से अंग्रेजी हुकूमत का इस ओर ध्यान नहीं था. शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इसीलिए आगरा को अपने लिए मुफीद माना था. नूरी दरवाजा, नाई की मंडी, हींग की मंडी में करीब एक साल तक शहीद भगतसिंह और उनके साथी रहे. इसके अलावा एक अहम वजह यह भी थी कि, कीठम, कैलाश भरतपुर का जंगल था. इन जंगलों में ही क्रांतिकारी अपने बनाए बम का परीक्षण करते थे. इन्हीं जंगलों में क्रांतिकारी हथियारों से निशाना लगाना भी सीखते थे.
असेंबली में फोड़ा था आगरा का बनाया बम
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने करीब एक साल नूरी दरवाजा की कोठी नंबर 1784 में बिताए थे. घर में ही बम की फैक्ट्री लगाई थी. यहां पर तैयार किए बम का भरतपुर के जंगल, कीठम के जंगल, कैलाश के जंगल, नाल बंद का नाला और नूरी दरवाजा के पीछे के जंगल में परीक्षण किया जाता था. अधिक तीव्रता वाले बम का परीक्षण झांसी के पास बबीना के जंगलों में किया जाता था. सभी आगरा में नाम बदल कर रहे थे. भगत सिंह का यहां उपनाम रंजीत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का उपनाम बलराम, राजगुरु का उपनाम रघुनाथ और बटुकेश्वरदत्त का उपनाम मोहन था. भगत सिंह और उनके साथियों ने 8 अप्रैल-1929 को असेंबली में बम फोड़ा था. उस दिन अंग्रेजी सरकार असेंबली में सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल पेश कर रही थी. यह दोनों ही कानून बहुत ही दमनकारी थे. असेंबली में 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे के साथ भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने सरेंडर कर दिया था.