आगरा :ताजमहल न सिर्फ आगरा बल्कि पूरे देश की शान है. इस खूबसूरत इमारत को निहारने के लिए दूर-दूर से लोग आगरा आते हैं. मगर शहर में बिखरा कचरा पर्यटकों को मायूस करता है. शहर में कूड़ा निस्तारण के लिए 16 करोड़ रुपये के डस्टबिन और भूमिगत डस्टबिन लगाए गए थे मगर देखरेख में लापवाही के कारण डस्टबिन ही कबाड़ बन गए हैं.
जानकारी देते संवाददाता श्यामवीर सिंह. करीब दो साल पहले आगरा नगर निगम की ओर से लोगों को 14 करोड़ रुपये के डस्टबिन बांटे गए थे (Dustbins worth Rs 14 crore distributed in Agra). लाल, नीले और हरे रंग के प्लास्टिक डस्टबिन बांटने का मकसद यह था कि गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग कलेक्ट किया जाए. मगर डस्टबिन भी अब उपयोग के नहीं रहे. निगम की ओर से प्लास्टिक डस्टबिन दिए गए, लोगों ने उनमें पौधे लगा दिए. कूड़ा कलेक्शन की गाड़ियों में मिक्स कूड़ा ही पहुंच रहा है.
इसके अलावा नगर निगम ने अर्बन एनवायरटेक और टीटीएस कंपनी की मदद से शहर में दस जगह पर भूमिगत डस्टबिन (underground dustbin in agra ) लगाए थे. दीवानी चौराहा, नेहरू नगर, भगवान टाकीज, फतेहाबाद रोड, बाग फरजाना, खंदारी समेत 10 जगहों पर लगाए गए हर अंडरग्राउंड डस्टबिन की क्षमता 2.1 क्यूबिक मीटर थी. ये भी अब फेल हो गए हैं. अंडरग्राउंड डस्टबिन में जमीन के नीचे सीमेंटेड बेस पर लोहे का कंप्रेशर और सिस्टम लगा था, जो जलभराव के कारण गल गए. सपा पार्षद राहुल चौधरी का आरोप है कि नगर निगम ने बिना किसी रणनीति के और जांच-पड़ताल के शहर में भूमिगत डस्टबिन बना दिए, जो बेकार हो चुके हैं. सरकार की गाढ़ी कमाई को अधिकारियों ने कमीशन के लिए लूट लिया.
आगरा शहर में दस जगहों पर अंडरग्राउंड डस्टबिन लगाए गए थे. आगरा के महापौर नवीन जैन का कहना है कि अंडरग्राउंड डस्टबिन बनाने की पहल अच्छी थी. सूखे कचरा के साथ गीला कचरा भी आता है. जिसमें पानी होता है और इस पानी की वजह से डस्टबिन का लोहा गल गया. तकनीकी कारणों और रखरखाव के अभाव में ये बेकार हो गए हैं. अब वे संचालन योग्य नहीं हैं. जो डस्टबिन ठीक हैं, उनसे कचरा उठाया जा रहा है. महापौर का दावा है कि लोग प्लास्टिक डस्टबिन का उपयोग कर रहे हैं.
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