वाराणसी:शिक्षा के साथ देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों खासतौर पर लड़कियों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए शबीना कई रोजगार परक ट्रेनिंग भी देने का काम कर रही हैं. वह भी उस मुस्लिम कम्युनिटी में जहां लड़कियों और महिलाओं को परदे में रखा जाता है. इन सामाजिक प्रभाव को तोड़ते हुए सबीना ने न सिर्फ खुद को शिक्षित किया, बल्कि बहुत सी लड़कियों और लड़कों को भी शिक्षित करने में जुटी हुई हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के सपने को भी पूरा कर रही हैं.
नक्खीघाट के एक बेहद गरीब परिवार की रहने वाली शबीना एक छोटे से मकान में 2007 से एक मदरसे का संचालन करती आ रही हैं. शबीना बताती हैं कि जब वह कक्षा सात में पढ़ती थी और एक कंपटीशन में हिस्सा लेने के लिए गई थी तो वहां पर सबका परिचय लेने के दौरान जब उनसे पूछा गया कि तुम कहां से आई हो तो उन्होंने बताया नक्खीघाट. इस पर एक व्यक्ति ने कमेंट किया कि अच्छा वही जाहिलों का मोहल्ला. बस यही बात शबीना के दिल में चोट कर गई. वह हर वक्त यह सोचने लगी कि आखिर उसके मोहल्ले को जाहिलों का मोहल्ला क्यों कहते हैं?
इसी बात को दिल और दिमाग में रखकर शबीना ने अपने घर से कुछ दूर एक छोटे से कमरे में मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू किया. हाल ये हुआ कि देखते-देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन सिर्फ लड़कों की. लड़कियां अब भी उसके इस स्कूल से दूर थी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. शबीना ने घर-घर जाकर लड़कियों के मां-बाप को यह समझाने की कोशिश की कि अगर लड़कियां पढ़ेंगी नहीं तो कल जब उनकी शादी होगी तो वह अपने पति के ऊपर निर्भर होंगी. और अगर पति ने उन्हें छोड़ दिया तो शायद उनके आगे खाने के भी लाले होंगे.