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शहादत दिवस विशेष : महामना ने किया था भगत सिंह की फांसी रुकवाने का प्रयास !

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Published : Mar 23, 2020, 7:06 PM IST

अंग्रेजी शासन से भारत को आजादी दिलाने के लिए हंसते-हंसते फांसी को गले लगाने वाले भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी और भारत के महान सपूत थे. उन्होंने सन् 1942 में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की सदस्यता ग्रहण की थी. इसके माध्यम से भगत सिंह की मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी. इस दौरान भगत सिंह ने वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कुछ दिन गुजारे थे.

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भगत सिंह (प्रतिमा).

वाराणसी:भगत सिंह एक ऐसा नाम जिसे भारत का बच्चा-बच्चा जानता है, जो हंसते-हंसते देश के लिए बलिदान हो गए. भारत माता के इस महान सपूत को आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. बंगाल के बाद बनारस को क्रांतिकारियों का गढ़ कहा जाता है. सरदार भगत सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय, पंडित मदन मोहन मालवीय और बनारस यह सब एक कड़ी में जुड़ती है.

भगत सिंह और बनारस का नाता
बनारस में पहली बार भगत सिंह की सहायता सचिंद्र नाथ सान्याल ने की थी. काशी में जन्मे सान्याल अपने समय के बड़े क्रांतिकारियों में से एक थे. उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना की थी. महात्मा गांधी द्वारा 1942 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं को इस संगठन ने राह दिखाने का काम किया था. यह माना जाता है कि सन् 1942 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी. इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई.

जानकारी देते सोशल साइंस संकाय अध्यक्ष.

हॉस्टल में रुके थे सरदार भगत सिंह
हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ने जयदेव कपूर को संगठन को मजबूत करने के लिए बनारस भेजा था, लेकिन आंदोलनकारियों की भर्ती में ज्यादा समय लग रहा था. ऐसे में जयदेव ने बीएससी का कोर्स पूरा करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया. इस समय भगत सिंह ने बनारस पहुंचकर जयदेव के साथ कुछ दिनों बीएचयू के लिमडी हॉस्टल में गुजारे थे.

प्रो. कौशल किशोर मिश्रा ने बताया क्रांतिकारियों के बहुत से इतिहास को लिखा ही नहीं गया. उन्होंने कहा कि मैं यह मानता हूं कि क्रांतिकारी आंदोलन का गढ़ बंगाल के बाद यदि पूरे भारतवर्ष में कहीं हुआ तो वह बनारस का काशी हिंदू विश्वविद्यालय रहा. बंगाल से भागकर क्रांतिकारी बंगाली टोला के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही रुकते थे. लिमडी हॉस्टल और बिरला हॉस्टल इसका केंद्र हुआ करता था. सचिंद्र नाथ सान्याल क्रांतिकारियों के गुरु और मार्गदर्शक रहे. उन्होंने क्रांतिकारियों को संगठित किया. इन्होंने भगत सिंह को आगे बढ़ाने का काम किया.

शादी की दुविधा में फंसे सरदार
भगत सिंह ने सचिंद्रनाथ सान्याल से पूछा कि क्या मुझे विवाह करना चाहिए. इस पर उन्होंने जवाब देते हुए कहा विवाह करना न करना या आपका अपना फैसला है, लेकिन मैं एक बात कहना चाहूंगा अगर आप विवाह कर लेंगे तो पारिवारिक बंधन में बंध जाएंगे और देश की सेवा नहीं कर पाएंगे. भगत सिंह ने भी बात को समझ गए और उन्होंने उनकी बातों को स्वीकार किया और विवाह नहीं किया. लगभग 1922 से 1925 के समय भगत सिंह काशी आए थे. क्रांतिकारियों के साथ देश को आजाद कराने के लिए अपने बलिदान को सर्वोच्च समझा.

महामना ने किया कोशिश
भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय के मन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए अपार प्रेम था. उनको जब फांसी की सजा का पता चला, तो उन्होंने 14 फरवरी 1921 को खुद लॉर्ड इसरविन के पास एक दया याचिका लेकर गए. इसमें उन्होंने तीनों की फांसी पर रोक लगाने और सजा कम करने का आग्रह किया था.

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