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अब पहन सकेंगे फूलों से रंगे हुये कपड़े, जानिये कौन कर रहा इन्हें तैयार?

इन दिनों फूलों के रंगों (हर्बल रंग) से कपड़ों पर टेक्सटाइल किया जा रहा है. मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों को सुखाकर साल्वेंट में मिक्स किया जाता है. जिसके बाद ऑर्गेनिक और इनॉर्गेनिक मॉडेंट मिलाकर कपड़े को डाई करते हैं.

एनबीआरआई
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Published : Jun 24, 2022, 8:22 PM IST

लखनऊ : इन दिनों फूलों के रंगों (हर्बल रंग) से कपड़ों पर टेक्सटाइल किया जा रहा है. गांव के लोगों को रोजगार मिल सके इसके लिये एनबीआरआई ने पानी पर भी एक्सपेरिमेंट किया है. एनबीआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि हर्बल रंग हर मायने में अच्छे होते हैं. इससे कोई इंफेक्शन नहीं होता है. इसे मंदिरों से वेस्ट फ्लावर कलेक्ट करके बनाया जाता है. फिर इसके बाद कपड़ों पर टेक्सटाइल किया जाता है.

इस तरह से होता है कपड़ों पर टेक्सटाइल :सबसे पहले मंदिरों में चढ़ाए गए फूल हम अपने लैब में लाते हैं. फिर उसे सुखाया जाता है. उसके बाद हम सूखे हुए फूलों को साल्वेंट में मिक्स करके ओवर नाइट के लिए रखते हैं. 24 घंटे के बाद रोटावापोर पर कंसंट्रेट करते हैं. फिर उसे साल्वेंट में मिक्स करके अलग-अलग ऑर्गेनिक और इनॉर्गेनिक मॉडेंट मिलाकर कपड़े को डाई करते हैं.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला

पानी पर भी हुआ यह एक्सपेरिमेंट :एक्सपेरिमेंट के नेचुरल डाई से हम प्रदूषण को भी कंट्रोल में कर सकते हैं, क्योंकि इसमें किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है. सिंथेटिक डाई का इस्तेमाल करने पर इंडस्ट्री में जो नदियों-नालों में केमिकल बहा दिए जाते हैं, वह कहीं न कहीं से री-साइकिल होकर हमारे पास आते हैं. यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं. नेचुरल डाई में ऑर्गेनिक मॉडेंट का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसको हम पीने के पानी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं सॉल्वेंट आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकते और यह काफी मंहगे भी होते हैं. तो इसकी जगह पर एनबीआरआई ने पानी पर भी एक्सपेरिमेंट किया है. यह एक्सपेरिमेंट गांव के लोगों के लिए एक अच्छे रोजगार का साधन है.

वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल ने बताया कि कपड़ों पर टेक्सटाइल का यह प्रोजेक्ट हम करीब दो साल से कर रहे हैं. इस पर पूरा काम किया है. अब यह पूरी तरह से तैयार और सफल हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में दिए एक भाषण में कहा था कि नेचुरल कलर से अगर कपड़े बनते हैं तो वह काफी अच्छा होगा. इस पर हमारे वैज्ञानिकों को काम करना चाहिए. जिसके बाद से हमने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. हम अपनी टीम के साथ मंदिरों से वेस्ट फ्लावर्स को इकट्ठा करते हैं.

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बिल्कुल अलग है नेचुरल डाई :प्रोजेक्ट एसोसिएट आंकाक्षा सिंह ने बताया कि नेचुरल डाई सिंथेटिक रंग से बिल्कुल अलग है. खास बात यह है कि इससे किसी को न कोई एलर्जी होगी और न ही कोई इंफेक्शन. सिंथेटिक डाई में जो फिक्सिंग के लिए मॉडेंट इस्तेमाल किए जाते हैं वह इनऑर्गेनिक होते हैं, लेकिन नेचुरल डाई में ऑर्गेनिक मॉडेंट का इस्तेमाल होता है. जैसे कत्था, सुपारी और मेहंदी जो कि त्वचा के लिए नुकसानदायक नहीं होते हैं. इसकी लागत भी बहुत कम है.

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