लखनऊ: कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम करने के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण व्यापारियों और बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. बच्चों की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए सरकार ने क्या-क्या कदम उठाए हैं, इस बारे में बाल अधिकार आयोग की सदस्य प्रीती वर्मा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
ईटीवी भारत से बातचीत करतीं बाल अधिकार आयोग सदस्य. वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया में अपना प्रभाव दिखाया है. कोई इसके संक्रमण का शिकार हुआ और जो संक्रमण का शिकार नहीं हुए वे लॉकडाउन के चलते घरों में कैद रहने को मजबूर हैं. व्यापारियों का उद्योग और बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. ऐसे ही बच्चों को तमाम समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. बच्चों की समस्याओं को लेकर राज्य बाल अधिकार आयोग भी सक्रिय है. आयोग ने इस दौरान क्या कदम उठाए, इस संबंध में बाल अधिकार आयोग की सदस्य प्रीती वर्मा ने ईटीवी भारत से बात की.
प्रीती वर्मा ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में अभिभावकों ने फीस वसूले जाने के दबाव को लेकर स्कूल प्रबंधन की शिकायत की थी. इस पर आयोग ने स्कूल प्रबंधन से अपील की थी कि फीस वसूली को लेकर बच्चों के अभिभावकों पर दबाव न बनाया जाए.
यदि संभव हो सके तो स्कूल प्रबंधन तीन माह की फीस माफ कर दें, ताकि अभिभावकों समस्याओं से जूझना न पड़े. साथ ही सरकार ने बच्चों के अभिभावकों से भी अपील करते हुए कहा कि जो लोग फीस देने में सक्षम हैं, तो वे लोग फीस देने में आनाकानी न करें, जिससे स्कूल के शिक्षक, काम करने वाले कर्मचारियों का वेतन देने में स्कूल प्रबंधन को कोई समस्या नहीं हो.
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उन्होंने बताया कि कस्तूरबा गांधी विद्यालयों में पढ़ने वाली किशोरियां आजकल अपने घरों पर हैं, जिनमें ज्यादातर ग्रामीण अंचल की हैं. उन्हें निजता से जुड़ी तमाम समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. ऐसी शिकायतें और सूचनाएं हमें मिल रही है. इसके बाद हमने छात्राओं की समसयाओं को देखते हुए संस्थाओं से सम्पर्क कर उनका सहयोग लिया है.
संस्थाओं के माध्यम से कस्तूरबा गांधी विद्याल की छात्राओं को हाइजीन किट उपलब्ध कराया गया. सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है, लेकिन आयोग बच्चों के प्रति संजीदगी से कार्य कर रहा है. कोरोना से संक्रमित लोगों का इलाज तो किया जा रहा है, लेकिन यदि बच्चों को कहीं इलाज कराने में दिक्कत होती है, तो उसे भी सक्रियता से इलाज मुहैया कराने में मदद की जा रही है.