गोरखपुर: बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज (Baba Raghav Das Medical College) में स्थापित आई बैंक के आंकड़े को देखने के बाद यह तथ्य उभर कर सामने आ रहा है कि गोरखपुर के लोग नेत्रदान के मामले में बहुत कम उत्साही दिखाई दे रहे हैं. गोरखपुर से अपेक्षित कार्निया नहीं मिलने से जरूरतमंदों की आंखों को रोशनी देने के लिए कार्निया प्रयागराज और लखनऊ मेडिकल कॉलेज से मंगाना पड़ रहा है.
करीब 28 लोगों को अब तक कार्निया ट्रांसप्लांट करके उनकी आंखों की रोशनी को मेडिकल कॉलेज (Lucknow Medical College) ने लौटाई है लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्निया की कमी इस मामले में बड़ी बाधा है. कार्निया ट्रांसप्लांट से गोरखपुर, गोंडा, बिहार और महराजगंज के मरीजों को लाभ मिला है. कॉलेज प्रशासन इसके लिए फिर से प्रचार- प्रसार पर जोर देने की बात कह रहा है. साथ ही निजी अस्पतालों पर इसकी पहुंच बढ़ाने की बात हो रही है.
दरअसल, गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में कार्निया बैंक की स्थापना (Establishment of Cornea Bank) वर्ष 2018 में हुई थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने इसका उद्घाटन किया था लेकिन स्थापना के 4 साल बाद भी यहां पर गोरखपुर के सिर्फ 4 लोगों ने कार्निया दान किया. इसके बाद कोई भी डोनर सामने नहीं आया. जिसका नतीजा यह है कि बैंक दूसरे मेडिकल कॉलेजों के रहमों करम पर संचालित हो रहा है.
सभी कार्निया लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (King George Medical University) और प्रयागराज मेडिकल कॉलेज (
Prayagraj Medical College) से मंगाई गई है. माना जा रहा है कि गोरखपुर में इसकी कमी के पीछे प्रचार- प्रसार की नाकामी मुख्य वजह है, तो निजी अस्पतालों में भी इसके लिए प्रोत्साहन और प्रेरणादाई स्लोगन का अभाव लगता है.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के एचओडी डॉ. राम कुमार जायसवाल कहते हैं कि कार्निया के डोनेशन में कमी आने के पीछे एक वजह कोरोना वायरस का होना भी रहा है, जिसमें न तो लोग खुद सामने आए और न ही मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इसकी अनुमति दी थी. उस दौरान रोक लगाई गई थी. लोगों को इससे जोड़ने के लिए पहल किया जाएगा. एचसीआरपी कार्यक्रम के तहत लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाएगी.
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आंखों में रोशनी न हो तो हम इस दुनिया को देख नहीं सकते. सिर्फ कार्निया खराब होने से सैकड़ों लोगों की जिंदगी में अंधेरा छाया है. कार्निया जिसे पुतली कहते हैं आंख की पारदर्शी परत होती है. इसके जरिए प्रकाश आंखों के अंदर पहुंचता है. यह प्रकाश को आंख में फोकस भी करती है, जिससे साफ दिखता है.
कार्निया ट्रांसप्लांट से दृष्टिहीन व्यक्ति के जीवन में नई रोशनी मिलती है. मृत्यु के बाद तमाम लोग अपनी आंखों का दान करते हैं, जिससे कार्निया निकालकर कार्निया बैंक में सुरक्षित रखा जाता है. मृत्यु के 6 घंटे के अंदर कार्निया निकाले जाने की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए और इसे एक हफ्ते के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाना चाहिए.
एक व्यक्ति के कार्निया से 2 लोगों के अंधेरे जीवन में प्रकाश लाया जाता है. बीआरडी में कार्निया बैंक शुरू होने के बाद आंखों की रोशनी गंवा चुके 250 से अधिक नेत्रहीन लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है लेकिन अभी उनकी आंखों में रोशनी नहीं लौट रही. डॉक्टर की सलाह है कि आंखों की देखभाल करने के लिए जरूरी बताए गए. उपायों पर ध्यान देना चाहिए जिसमें खानपान भी शामिल है. साथ ही लैपटॉप और मोबाइल पर 45 मिनट से ज्यादा लगातार आंखों को संपर्क में नहीं रखना चाहिए.
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